उत्तर प्रदेश नोएडा के जिलाधिकारी सुहास एलवाई, पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले आईएएस अधिकारी बन गए हैं। प्रशासनिक काम में अपनी कर्तव्यनिष्ठता और ईमानदारी से काम को लेकर चर्चित सुहास ने खेलों में भी शानदार प्रदर्शन कर देश की मान–सम्मान में चार चांद लगाया है। यहां तक का सफर संघर्ष से भरा रहा है।
कर्नाटक के ग्रामीण इलाके से आने वाले सुहास एलवाई इलाज जन्म से ही दिव्यांग हैं। लेकिन उन्होंने दिव्यांगता को रास्ते में नहीं आने दिया और अपनी कामयाबी से आज पूरा देश उन पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है। बाल्य काल से ही सुहास खेल में काफी रूचि रखते थे, पढ़ाई में भी मेधावी छात्र थे। लिहाजा फैमिली भी खूब सपोर्ट करती थी। एक पैर दिव्यांग होने के चलते टीका टिप्पणियों का भी सामना करना पड़ता था। लेकिन उन्होंने इसे दरकिनार करते हुए अपनी खेल और पढ़ाई को पूरी शिद्दत से जारी रखा।
क्रिकेट में रुचि थी, पिता भी समय-समय पर सुहास का हौसला बढ़ाते रहते थे। पिता की सरकारी नौकरी थी, लिहाजा उनका स्थानांतरण होते रहता था। सुहास को शहर दर शहर का भी अनुभव होता रहा। 12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग के तरफ रुख किया, एनआईटी से उन्होंने कंप्यूटर ब्रांच में बैचलर डिग्री हासिल की। साल 2005 मैं सुहास के पिता दुनिया को छोड़ चले गए। परिवार के लिए यह वक्त आपने मुश्किलों से भरा था।
सुहास ने हिम्मत नहीं हारी, आईएएस बनने के लिए उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी। जमकर तैयारी की और यूपीएससी की परीक्षा को क्रैक किया। आईएस बनने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग आगरा में हुई। इस दौरान आजमगढ़, महाराजगंज, हाथरस, इलाहाबाद, नोएडा (गौतमबुद्ध नगर) के भी डीएम बने।
ऑफिस से आने के बाद अपने स्ट्रेस को दूर करने के लिए बैडमिंटन में हाथ आजमाया। धीरे-धीरे उन्होंने पेशेवर तरीके से बैडमिंटन को खेलने लगे। अंतरराष्ट्रीय मैच के लिए साल 2016 में सुहास चीन भी गए और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। टोक्यो पैरा ओलंपिक में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए, बैडमिंटन के फाइनल मुकाबले में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को 21-19, 21-15 से मात देकर। गोल्ड मेडल पर अपना कब्जा जमाया और इसी तरह बन गए भारत के पहले आईएएस अधिकारी। सुहास साहब की कामयाबी पर आज पूरा देश फक्र कर रहा है