ये स्टोरी उन लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन सकती है जो सिविल सर्विसेज में भर्ती होकर देश और समाज की सेवा करना चाहते हैं। जो चाहते हैं कि देश भ्रष्टाचार मुक्त हो। फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाले आईएएस अफसर मोहम्मद अली शिहाब की कहानी संघर्षों से भरी पड़ी है। कभी गरीबी के चलते अनाथालय में पढ़ना पड़ा था, टोकरियां बेचनी पड़ी थी। चपरासी का काम भी किया, फिर 21 सरकारी परीक्षा पास कर बन गए IAS अधिकारी।
IAS मोहम्मद अली शिहाब मल्लपुरम (केरल) से बिलांग करते हैं। जब शिहाब बचपन में थे, तभी उनके पिता का बीमारी के चलते निधन हो गया। घर की जिम्मेवारियों का बीड़ा मां को उठाना पड़ा। स्थिति इतनी खराब हो गई कि मां ने शिहाब को अनाथालय में रहने के लिए डाल दिया। जब शिहाब बच्चे थे, तभी उन्हें पिता के साथ बांस की टोकरियां बेचना पड़ा था।
शिहाब अनाथालय को वरदान मानते हैं। अनाथालय में ही पढ़ाई–लिखाई पर ध्यान भी देने लगे। अनाथालय में उन्होंने लंबा वक्त व्यतीत किया, 10 साल अपने जीवन के गुजारे। वक्त का पहिया घुमा और शिहाब की किस्मत भी। शिहाब शुरू से ही मेधावी थे। उनकी प्रतिभा की तारीफ सब लोग करते थे। उच्च शिक्षा के लिए पैसों की दरकार थी, जिस चलते शिहाब सरकारी परीक्षा की तैयारियों पर अपना ध्यान दिया।
प्रतिभा इतनी की अपने काबिलियत के बलबूते उन्होंने 21 परीक्षाओं को पास किया। वन विभाग, जेल वार्डन और रेलवे टिकट परीक्षक जैसे प्रतिष्ठित पदों पर भी काम किया। अब उनकी चाहत आईएएस बनने की थी, लिहाजा उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारियां शुरू कर दी। पहले दो अटेम्प्ट में शिहाब को सफलता नहीं मिली। फिर जमकर तयारी की।
साल 2011 शिहाब के लिए खुशियों से भरा था। यूपीएससी की जारी परिणाम में उन्होंने 226वीं रैंक हासिल की। उनकी यह कहानी सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। सलाम है, IAS मोहम्मद अली शिहाब की प्रतिभा को।