विश्व को हमने सिखाया था योग : बिहार ने दिया विश्व को पहला योग विश्वविद्यालय
बिहार की धरती ज्ञान की धरती रही है । शंकराचार्य से लेकर चाणक्य तक सबने बिहार की विद्वता का लोहा माना है । पुरे भारत के दस सबसे पुराने विश्वविद्यालों में से तीन बिहार में थे । पूरी दुनिया से लोग ज्ञान प्राप्त करने के लिये बिहार आते थे । विश्व को योग हमने सिखाया और इसके लिये बकायदा पहला विश्वविदयालय भी बिहार में ही खुला ।
विश्व मानवता को योग परंपरा से अवगत कराने के लिए स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 1963 में बिहार योग विद्यालय की स्थापना मुंगेर में की थी। मुंगेर के किला परिसर में एक पहाड़ी पर स्थित बिहार योग विद्यालय का गंगा दर्शन आश्रम योग संस्कृति की धरोहर बनकर विश्व गौरव का प्रतीक बन गया है। सांख्य, पतंजलि और गीता के योग दर्शन पर आधारित यह संस्थान विज्ञान, चिकित्सा और मनोविज्ञान का समन्वय कर आज योग की व्यावहारिक शिक्षा दे रहा है। विश्व के सौ से अधिक देशों में इसकी शाखाएं हैं।
बिहार योग विद्यालय की स्थापना के समय स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने कहा था कि योग भविष्य की संस्कृति बनेगी। उनकी कही यह बातें आज सच हो रही हैं। योग को मिली विश्वव्यापी प्रसिद्धि को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया है।
स्वामी निरंजनानंद को मिला पद्मभूषण सम्मान
बिहार योग विद्यालय का संचालन इस समय स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के निर्देशन में हो रहा है। योग संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें इसी साल पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। महायोगी स्वामी सत्यानंद के शिष्य निरंजनानंद का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनांद गांव में 1960 में हुआ था। चार साल के उम्र में उन्हें स्वामी सत्यानंद अपने साथ बिहार योग विद्यालय ले आए थे। 1995 में स्वामी सत्यानंद के उत्तराधिकारी बने। योग को घर-घर पहुंचाने के लिए उन्होंने 1995 में ही बाल योग मित्र मंडल की स्थापना की। बाल योग मित्र मंडल के लगभग 80 हजार बच्चे आज योग के प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं।
विदेशों से लोग आते हैं प्रशिक्षण के लिए
बिहार योग विद्यालय की जब स्थापना की गई तो लोगों में यह धारना थी कि योग साधना साधु-संन्यासियों के लिए है, लेकिन स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने जनमानस को नया संदेश दिया। उन्होंने बताया कि योग जीने की कला है, जीवन पद्धति है, जीवन का विज्ञान है। इसके बाद स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने योग को जन-जन तक पहुंचाने की बीड़ा उठायी। उन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि विश्व भर में योग का प्रचार-प्रसार किया। आज इस संस्थान ने योग शिक्षा के लिए पूरे विश्व में अपनी खास पहचान बनायी है। विश्व के प्राय: सभी देशों से लोग योग का प्रशिक्षण लेने यहां आते हैं।
मुंगेर स्थित योग विद्यालय 151 योगासनों में माहिर है योग गुरू श्रेया सात साल की उम्र में लोहे की नुकीली कीलों पर भी कर चुकी है हठयोग दर्जनों राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीत कर सूबे का बढ़ाई है मान जिमनास्ट की तरह विभिन्न दिशाओं में घुमाती है शरीर सीएम नीतीश कुमार, योगगुरू रामदेव आदि हैं श्रेया की मुरीदें खगड़िया। फुलेन्द्र मल्लिक उम्र महज 15 साल पर 151 प्रकार के योगासनों व 21 प्रकार के प्राणायाम में पूरी तरह दक्ष। सात वर्ष की उम्र में ही नुकीली कीलों पर योग (हठयोग) करने का रिकार्ड।
जी हां बात हो रही है खगड़िया शहर के लोहापट्टी शिवालय रोड की रहने वाली नन्ही योग गुरू श्रेया कश्यप की। श्रद्धा व महेन्द्र त्यागी की लाडली श्रेया अब तक दर्जनों राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीत कर सूबे का मान बढ़ा चुकी है।
फरकिया की इस होनहार बेटी ने बिहार के अलावा पड़ोसी देश नेपाल के काठमांडू, सिक्किम, पोर्टब्लेयर में भी सम्मानित हो चुकी हैं। दिल्ली में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार, जयपुर में एम्बेसी लिट्ल स्टार अवार्ड, पटना में राष्ट्रीय युवा पुरस्कार से नवाजी जा चुकी है।
सीएम नीतीश कुमार, राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, योगगुरू रामदेव आदि दिग्गज भी श्रेया की मुरीदें हैं। पलक झपकते ही योगासन, प्राणायाम व हठयोग करने में माहिर श्रेया प्रशिक्षित जिमनास्ट की तरह अपनी शरीर को चहुंमुखी दिशाओं में घुमा देती है। 21 सितंबर 2002 को जन्मी श्रेया अपने दादा जी स्व. गुरू शांति प्रकाश व्यायामाचार्य को आदर्श मानती है।
श्रेया कहती हैं- जो योग करेगा, आखिर में वही मौज करेगा। योगासन व प्राणायाम करने से शरीर स्वस्थ रहता है, निरोग रहता है। इससे मन भी प्रसन्न रहता है। श्रेया कहती हैं- स्वस्थ मनुष्य ही समाज का, देश का ओर विश्व का सेवा कर सकता है। जो स्वस्थ नहीं वह अपने आप पर बोझ है।