भारत का स्केटबोर्ड वाला गांव, एक पिछड़ा गांव जो पहुंचा अंतरराष्ट्रीय स्तर तक

मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में एक गांव स्थित है जिसका नाम है जनवार, इस गांव में आदिवासियों की संख्या ज्यादा है। यह गांव स्केटबोर्डिंग वाले गांव के नाम से भी जाना जाता हैं। स्केट बोर्ड के बताओ ना इस गांव के बच्चे दुनिया में नाम कमा रहे हैं। स्केटबोर्डिंग के कारण ‘जनवार गांव’ आज से 5-6 साल पहले अचानक से चर्चा में तब आया जब जनवार गांव की बेटी आशा ने को चार पहियों की रफ्तार से स्टार बन कर उभरी।

जनवार गांव के बच्चे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्केटिंग में अपनी पहचान बना चुके हैं, यह गांव जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है कुछ वर्ष पहले तक गांव सड़क बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित था पर पिछले 5-6 सालों में स्केटिंग गांव की तस्वीर बदल दी है।

आप यह सोच रहे होंगे जो गांव मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित था उस गांव के बच्चे स्केटिंग कैसे करने लगे। गांव में हुए इस बदलाव के पीछे किसी सरकार या प्रशासनिक अधिकारी का हाथ नही बल्कि एक विदेशी महिला का है। जर्मनी की नागरिक उलरिके रेनहार्ट नामक एक महिला एक बार पन्ना घूमने आई थीं। उलरिके रेनहार्ट ने गांव की स्थिति देखकर गांव के लिए कुछ करने की सोची, उलरिके रेनहार्ट ने बच्चों की प्रतिभा देखकर स्केटिंग को बढ़ावा दिया स्केटिंग को गांव के लोगों ने अपनाया की जनवार जैसे गांव में हर घर में स्केटिंग बोर्ड दिखने लगा और धीरे धीरे गांव की स्थिति बदल गई।

उलरिके रेनहार्ट ने गांव के लिए एक नियम बनाया था कि ‘स्कूल नहीं तो स्केट बोर्ड भी नहीं’। स्केट बोर्ड के कारण जनवार गांव की स्केट गर्ल आशा गोंड़ पहली लड़की बनी जो गांव की गलियों से निकलकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन के लिए विदेश गई आशा आत्मविश्वास के साथ फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती है। आशा ने बीते वर्ष 2018 में चीन के नानजिंग में आयोजित एशियाई देशों की स्केटिंग बोर्ड के प्रतियोगिता में भाग लिया था।

आशा के अलावा जनवार के कई बच्चों ने विशाखापट्टनम में आयोजित राष्ट्रीय रोलर स्केटिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लिया जिसमे उन्होंने दो गोल्ड मेडल समेत कुल पांच मेडल जीते। अभी तक इस गांव के बच्चे हैं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 30 से भी ज्यादा मेडल जीत चुके हैं जनवार में बदलाव लाने वाली उलरिके रेनहार्ट जर्मनी लौट चुकी हैं लेकिन उनके द्वारा की गई शुरुआत गांव और बच्चों की ज़िंदगी बदल रही है और उन्हें आगे ले जा रही है. गांव में चलने वाला कंप्यूटर सेंटर उलरिके की ही देन है जिसके लिए वह आज भी आर्थिक मदद भेजती हैं

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