आज हम आपको एक ऐसे परिवार से मिलवा रहे हैं जिन्होंने बेंगलुरु जैसे शहर को छोड़ मैंगलोर के पास एक गाँव में जाकर सुकून भरी जिंदगी जी रहे हैं।
आज हम बात कर रहे हैं ज्वेन लोबो और अविन पाइस की। इस पति-पत्नी की ज्यादातर ज़िंदगी बड़े शहरों में ही बीती है। ज्वेन फैशन इंडस्ट्री में बतौर कंटेंट राइटर काम करती थीं तो अविन IT कंसलटेंट हैं। दोनों पति-पत्नी ने ही कई सालों तक बड़े-बड़े शहरों में रहकर इंडस्ट्री में काम किया है। मैंगलोर आने से पहले वे लगभग 10 सालों तक बेंगलुरु में रहे। इधर ज्वेन चर्चा में कहती हैं कि बचपन से ही उनकी इच्छा गाँव में रहने की थी। वह हरियाली के बीच अपना घर बनाना चाहती थीं। अच्छी बात यह है कि अविन भी उनकी इस सोच से इत्तेफाक रखते हैं।
इसलिए उन दोनों को जैसे ही मौका मिला उन्होंने अपनी इस सोच को साकार करने का फैसला किया। बिहार ख़बर से बात करते हुए उन्होंने अपने इस सफर के बारे में बताया।
ज्वेन लोबो और अविन पाइस रहने के लिए बनाया Mud House.
पति-पत्नी बताते हैं कि उन्होंने कई साल पहले से अपने इस सपने को आकार देने के लिए काम शुरू कर दिया था। नौकरी के दौरान छुट्टी के दिनों में वे बेंगलुरु के आसपास खेतों, झीलों या उद्यानों में घूमने जाया करते थे। ऐसे लोगों से मिलते थे जो पहले से ही इस तरह की जीवनशैली जी रहे हैं।
“साथ ही, शहर की भागदौड़ से भी ऊब होने लगी थी। क्योंकि ज्यादातर समय तो सिर्फ घर से ऑफिस और ऑफिस से घर तक ट्रेवलिंग में ही चला जाता था। तब लगता था कि हम किस तरह की जिंदगी जी रहे हैं। साथ ही, हम अपने बच्चों के लिए एक ऐसी जिंदगी नहीं चाहते थे, जहाँ वे हमेशा किसी दौड़ में फँसे रहे। उन्हें हर चीज के लिए दूसरों के साथ नापा जाए। हम चाहते हैं कि वे लाइफ स्किल्स सीखें ताकि हर तरह की परेशानी का सामना कर सकें,” उन्होंने बताया।
फिर एक दिन ज्वेन लोबो ने अविन पाईस से पूछा कि क्या गारंटी है कि हम 60 की उम्र तक जिएंगे? अगर जिएंगे भी तो इस बात की क्या गारंटी है कि उसके बाद हम अपने सभी सपने पूरे कर पाएँगे? तो हम किस बात का इंतजार कर रहे हैं? अविन कहते हैं, “हम दोनों ने इस बारे में सोचा और तय किया कि अगर अभी नहीं तो कभी नहीं। लेकिन एकदम से किसी गाँव में शिफ्ट होने से पहले हमने एक साल के लिए ट्रायल करने की सोची ताकि इस एक साल के अनुभव के आधार पर अंतिम फैसला ले सकें।”
साल 2018 में ज्वेन और अविन एक साल के लिए अपने दोस्त के मैंगलोर स्थित फार्म में शिफ्ट हो गए। यहां पर उन्होंने एक शिपिंग कंटेनर को अपना घर बनाया, जिसमें न तो 24 घंटे पानी की सप्लाई थी और न ही बिजली की। उन्होंने चूल्हे पर खाना बनाना सीखा और थोड़े-बहुत खेती के गुर भी। लेकिन एक साल बाद उन्हें पता चला गया कि वे फार्म पर कम से कम चीजों में अपनी जिंदगी जी सकते हैं। इसके बाद उन्होंने मूदबिद्री तालुका के एक गांव में एक फार्महाउस बनवाया। दिलचस्प बात यह है कि उनका यह घर मिट्टी से बना है।
साथ ही वे बताते हैं, “हमने केवल 550 स्क्वायर फ़ीट जगह में घर बनाया है। घर की नींव में लेटराइट पत्थर और दीवारों के लिए मिट्टी की ईंटों का प्रयोग किया है। चिनाई के लिए भले ही सीमेंट का इस्तेमाल किया गया लेकिन घर पर किसी तरह का कोई प्लास्टर नहीं है। छत के लिए भी RCC की बजाय जीआई फ्रेम और सेकंड हैंड मैंगलोर टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है।”
उनके घर में एक बेडरूम, एक मचान, किचन, बाथरूम और टॉयलेट है। उन्होंने घर में सिर्फ जरूरत के हिसाब से ही फर्निशिंग की है। अपने पुराने फर्नीचर को फिर से इस्तेमाल कर इस दंपति ने अलमारी, मेज, सोफे और बेड तैयार किए हैं। इसके बारे में वे कहते हैं कि उनका उद्देश्य कम से कम साधनों में एक बेहतर जीवन जीना है।