भारत में दिन की शुरुआत चाय से ही होती है। हर शख्स चाय का दीवाना होता है। लेकिन भारत में प्रोफेशनल लोग चाय के मुकाबले कॉफी पीना ज्यादा पसंद करते हैं। कहानी एक ऐसे शख्स की है, जिन्होंने कॉफी का बिजनेस करने के लिए अपना बैंक का नौकरी छोड़ दिया। और आज उनका कॉफी बड़ा ब्रांड के रूप में जाना जाता है। इससे तीन सौ से भी ज्यादा किसानों को रोजगार मिल रहा है।
मेघालय की राजधानी शिलांग से आने वाली दसूमर्लिन को कॉफी के प्रति दीवानगी बचपन से ही रही है। आसपास के इलाके में कॉफी की फसल होती थी, तकरीबन हर घर में कॉफी के पौधे लगे थे। जबकि यहां के लोग कॉफी से ज्यादा दिलचस्पी चाय पीने में रखते थे, लिहाजा दसूमर्लिन इसको लेकर कुछ ऐसा सोची। जिससे लोगों का भी भला हो और कॉफी को ज्यादा तरजीह मिले।
फिर किया था, दसूमर्लिन ने कॉफी कंपनी की शुरुआत साल 2015 में की। जिसका नाम उन्होंने ‘स्मोकी फॉल्स ट्राइब कॉफ़ी’ रखा। धीरे-धीरे कंपनी के कॉफी की मांग अन्य जगहों से भी होने लगी। धीरे-धीरे पूर्वी उत्तर भारत के इलाकों में 14 से भी ज्यादा कैफे में कॉफी का सप्लाई होने लगा। देश के साथ बांग्लादेश न्यूजीलैंड, फ्रांस और साउथ अफ्रीका जैसे देशों के रिटेल दुकान में इसकी बिक्री होने लगी।
यहां तक का सफर आसान नहीं था। इस सफर में कई उतार-चढ़ाव के बावजूद दसूमर्लिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दसूमर्लिन ने बायोकेमिस्ट्री में मास्टर की डिग्री के बाद प्राथमिक स्कूल में शिक्षिका की भी भूमिका निभाई। अपना कॉपी कैफे भी खोला, लेकिन वह कुछ कारणों से वह फ्लॉप हो गया। एक समय ऐसा भी था, जब उन्होंने 1 किलो कॉफी को बनाकर अपने मित्रों और परिचितों को नमूने के तौर पर दिया था। फीडबैक अच्छा रहा, जिसके बाद उन्होंने तीन लाख का कर्ज लेकर इस बिजनेस की शुरुआत की।
आज दसूमर्लिन की की कामयाबी पर हर कोई गर्व कर रहा है। तीन सौ से भी ज्यादा किसानों को रोजगार देने वाली दसूमर्लिन महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन गई है।