बीते कुछ सालों में मशरूम की खेती के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। मशरूम की खेती में किसानों को कम जमीन और मेहनत की आवश्यकता होती है और परंपरागत फसलों के अपेक्षा मुनाफा कई गुना ज्यादा होता है।
कहानी एक ऐसे महिला की जो मशरूम की खेती के साथ अच्छी कमाई कर रही है और बीते एक दशक में 20,000 से अधिक लोगों को मशरूम की खेती की प्रशिक्षण दे चुकी है। इलाके में मशरूम की खेती को नया आयाम देने वाली इस महिला की कहानी हम सभी को पढ़नी चाहिए।
बिहार के दरभंगा जिले के बलभद्रपुर गांव से आने वाली पुष्पा झा जो वर्ष 2010 से ही मशरूम की खेती कर रही है। रोजाना 10 से 15 किलो मशरूम का उत्पादन पुष्पा करती है। 100 से 150 रुपए प्रति किलो की दर से बेचने पर उन्हें रोजाना एक हजार से पंद्रह सौ रुपए की कमाई आसानी से हो जाती है।
पुष्पा की उम्र 43 साल की है पति रमेश टीचर है। द बेटर इंडिया से बातचीत करते हुए पुष्पा ने बताया कि आज से 10 साल पूर्व इलाके के लोगों में मशरूम की खेती के बारे में कुछ ज्यादा जानकारी नहीं थी। किसी ने मेरे पति को इसके बारे में बताया। पति की ख्वाहिश थी कि घर पर खाली बैठे रहने के जगह कुछ काम करूं। फिर हमने पूसा विश्वविद्यालय समस्तीपुर से मशरूम की खेती के बारीकियों को समझा।
पुष्पा ने बताया कि जब हम ट्रेनिंग के लिए पहुंचे सभी सीटें भर गई थीं। लेकिन रमेश किसी भी परिस्थिति में इस ट्रेनिंग को पूरा करने के उन्होंने अधिकारियों से आग्रह किया। अंत में अधिकारी मान गए फिर दोनों लोगों ने एक साथ छह दिनों की ट्रेनिंग पूरी की।
पुष्पा कहती है कि आज के समय में साल के 365 दिन मशरूम की खेती आसानी से जाती है। लेकिन उस समय में, गर्मी के समय में यह असंभव नहीं था और हमने जून के समय भीषण गर्मी में ट्रेनिंग कंप्लीट ली। इसलिए हमने करीब तीन महीने के इंतजार के बाद सितंबर 2010 से इसकी खेती प्रारंभ कर दी।
पुष्पा ने 50 हजार रुपए की लागत से मशरूम की खेती शुरू की थी। वह कहती है कि एक महीने की ट्रेनिंग थी। गांव के कुछ असामाजिक तत्वों ने मेरे फार्म को जला दिया। लेकिन मेरे पति ने मुझे ऐसे समय में भी हिम्मत नहीं हारी। और फिर दूसरा फार्म तैयार कर दिया।
पुष्पा ने बताया कि शुरू के 5 साल बहुत कठिन रहे। हर साल दुगुने जोश के साथ हमने आगे बढ़ा। दरभंगा के लोकल मार्केट के साथ ही बिहार के दूसरे जिलों में भी मशरूम की सप्लाई हो रही है। पूसा यूनिवर्सिटी के माध्यम से भी मशरूम सुखा कर बेचा जाता है जिससे बिस्कुट, टोस्ट, चिप्स जैसी कई चीजें बनाई जाती है।
मशरूम की खेती की बारीकियों को सीखने के लिए पुष्पा के यहां महिलाएं के साथ पुरुष भी आते हैं। पूसा विश्वविद्यालय ने साल 2017 में पुष्पा को ‘अभिनव किसान पुरस्कार’ समेत कई अवार्ड से नवाजा है। पुष्पा स्कूल, कॉलेज से लेकर दरभंगा जेल के कैदियों को भी मशरूम की खेती के गुर सिखा चुकी है। पुष्पा भले ही इंटर पास हो लेकिन आज वह लोगों के लिए मिसाल बन गई है।
Source- The Better India