“खुद को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है” कवि मुहम्मद इकबाल के यह शब्द निसंदेह जोश का संचार करने वाले हैं। फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाले आईएएस श्रीधन्या सुरेश की कहानी संघर्षों से भरी पड़ी है। आइए इनकी संघर्ष भरी कहानी से रूबरू होते हैं।
केरला की राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) से 442 किलोमीटर दूर एक गांव है पोज़ुथाना। जो वायनाड जिले में आता है। फिलहाल यहां से राहुल गांधी सांसद हैं। बात राजनीति की नहीं बात है एक ऐसी लड़की की आईएएस बनने की जिनकी कहानी हर किसी को पढ़नी चाहिए। वर्ष 2018 तक श्रीधन्या एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी थीं, मगर अब आईएएस अफसर भी हैं। कुरिचिया जनजाति से ताल्लुक रखने वाली श्रीधन्या सुरेश की स्टोरी हर किसी के लिए प्रेरणादायी है।
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श्रीधन्या सुरेश के पिता मजदूर थे, मनरेगा में मजदूरी कर के परिवार का भरण पोषण करते थे। आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि पिता को तीर धनुष भेजना पड़ा। लेकिन अपने पढ़ाई में श्रीधन्या सुरेश ने कभी पैसों की कमी को नहीं आने दिया। श्रीधन्या सुरेश नाम गरीबी, मेहतन और कामयाबी की मिसाल का है। महज 22 साल की उम्र में इन्होंने सिविल सर्विस एग्जाम करके केरला की पहली जनजाति महिला आईएएस बनने का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया। 2018 में 410वीं रैंक हासिल कर UPSC की परीक्षा पास की।
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केरल का वायनाड़ आदिवासी इलाका होने के कारण यहां रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है। यहां के लोग टोकरी में तीर धनुष और मनरेगा के सहारे किसी तरह अपना जीवन गुजर-बसर करते हैं। श्रीधन्या सुरेश के पिता भी यहीं करते थे। अपने गांव के ही सरकारी स्कूल से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद श्रीधन्या ने सेंट जोसेफ कॉलेज से जूलॉजी में ग्रेजुएशन किया। फिर आगे की पढ़ाई के लिए कोझीकोड पहुंची और यही के कालीकट यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया।
इसके बाद श्रीधन्या केरल में ही अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में क्लर्क के रूप में काम करने लगीं। कुछ समय वायनाड में आदिवासी हॉस्टल की वार्डन भी रहीं।
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नौकरी के साथ-साथ ट्राइबल वेलफेयर द्वारा चलाए जा रहे सिविल सेवा प्रशिक्षण केंद्र में कुछ दिन कोचिंग की। उसके बाद वो तिरुवनंतपुरम चली गईं। अनुसूचित जनजाति विभाग से आर्थिक मदद मिलने के बाद श्रीधन्या ने पूरा ध्यान सिविल सर्विसेज की तैयारियों में लगा दिया। श्रीधन्या ने अपनी प्रतिभा के दम पर तीसरे प्रयास में वर्ष 2018 में सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली। 410 रैंक हासिल हासिल हुई। फिर जब उनका नाम इंटरव्यू की सूची में आया तब दिक्कत यह थी कि श्रीधन्या के पास साक्षात्कार के दिल्ली आने तक के पैसे नहीं थे। बात जब दोस्तों को पता चली तो उन्होंने चंदा जुटाया और श्रीधन्या के लिए 40 हजार रुपए की व्यवस्था कर उसे दिल्ली भेजा।