इन दिनों शशिकांत ओझा सुर्खियों में बने हुए हैं। सुर्खियों में बने रहने का कारण है इसलिए कि शशिकांत लोहा, एल्यूमीनियम, कॉपर, स्टेनलेस स्टील, माइल्ड स्टील और स्क्रैप मेटल की सहायता से कला उकेर कर रहे हैं। इन धातुओं का मदद से वे पशु-पक्षी, पेड़-पौधे इतना शानदार और खूबसूरत बना देते हैं कि देखने वाले की नजरें हटती नहीं है। ओझा पहले नौकरी करते थे, कला में रुचि थी इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ स्कल्पचर बनाने में भीड़ गए। राजधानी पटना के को पार कर चिड़ियाघर में भी उनकी कला को लोग दीदार कर रहे हैं। ओझा का सपना औरंगाबाद में स्कल्पचर पार्क बनाना है।
शशिकांत ने दैनिक भास्कर को बताया कि वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर पहले प्राइवेट कंपनी में नौकरी की। इसके बाद वन विभाग में सरकारी नौकरी मिला। इसके बाद ओझा नौकरी छोड़ जमशेदपुर में स्टेनलेस स्टील की छोटी सी कंपनी खोल दी। उन्होंने स्टेनलेस स्टील से एक शंख बनाया। शंख देख टाटा कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी बेहद खुश हुए। उन्होंने फ्लावर शो एग्जीबिशन में मुफ्त में स्टॉल लगाने का ऑफर दिया और यहीं से ओझा की कलाकृति की दुनिया शुरू हो गई। कॉपर वायर से प्लांट बनाकर शशिकांत के इस कला की लोगों ने खूब तारीफ की इसके बाद उन्होंने अपने कला को और बेहतरीन करने का सोचा।
#बिहार #औरंगाबाद शहर के कलाकार शशिकांत ओझा ने विशिष्ट कला में महारत हासिल की है । वे धातु के टुकड़ों और कबाड़ से अनूठी कलाकृतियां बनाते हैं । देश विदेश में उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं । pic.twitter.com/vJgmzkQKn0
— AIR News Patna (@airnews_patna) February 18, 2022
शशिकांत ने अपने शौक को को बड़े स्तर पर करने का फैसला लिया। इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक कला की प्रस्तुति की। राजधानी पटना के ईको पार्क में शशिकांत द्वारा बनाए गए वॉल म्यूरल मेटल से पशु, पक्षी, पुष्प व वृक्ष शोभा बढ़ा रहे हैं। पटना के चिड़ियाघर में उनके द्वारा बनाई गई स्टेनलेस स्टील से तितली जू की की शोभा बढ़ा रही है।
शशिकांत ओझा ने औरंगाबाद के दानी बिगहा स्थित सत्येन्द्र नारायण सिन्हा पार्क के आकर्षण का केंद्र बना घोड़ा भी बनाया है। कई स्थानों पर धातु से उनके द्वारा निर्मित पशु-पक्षी रखे गए हैं। कुछ दिनों पहले ही ओझा ने ऑटोमोबाइल पार्ट्स से एक बाघ बनाया है इसे देखने औरंगाबाद के डीएम और एसपी भी पहुंच चुके हैं और इसकी तारीफ कर चुके हैं। ओझा बताते हैं कि इस तरह के आर्ट देश में बहुत कम ही बनाए जाते हैं। इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों में इस तरह के कलाकृति ज्यादा होती है। वहां छह से सात लाख रुपए कीमत होती है, लेकिन मैं मलेशिया-इंडोनेसिया से 40 प्रतिशत कम कीमत में बेचता हूं।