मेहनत किसी चीज की मोहताज नही होती। इसको साबित किया है पीलीभीत के नूरुल हसन ने। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव से आने वाले नूरुल हसन की कहानी उन युवाओं के लिए प्रेरणा का काम कर सकती है, जो आईएएस और आईपीएस की तैयारी करना चाहते हैं। अतिसाधारण पृष्ठभूमि से आने वाले नूरुल ने बिना कोचिंग किए UPSC परीक्षा क्वालीफाई किया था। नूरुल के पिता जिले के कचहरी में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे।
नूरुल बताते हैं कि 12वीं के बाद उन्होंने B.Tech करने का फैसला किया। IIT के कोचिंग के लिए उन्हें रु 35000 की ज़रूरत थी। जिसके लिए उनके पिता ने उनके पढ़ाई के लिए गाँव मे अपनी 1 एकड़ ज़मीन बेच दी। जिसके बाद उन्होंने आईआईटी की कोचिंग की परंतु उन्हें आईआईटी में सफलता नहीं प्राप्त हुई। जिसके बाद उन्होंने एएमयू का प्रवेश परीक्षा पास कर वहाँ B.Tech में दाखिला लिया।
12वीं के बाद आर्थिक तंगी के बावजूद नूरुल ने किसी तरह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बी टेक किया। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर, उसी पैसे से कॉलेज की फीस भरते थे नूरुल।
B.Tech की पढ़ाई खत्म करने के बाद नूरुल को टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज और सीमेंस लिमिटेड जैसी कंपनी से जॉब के लिए ऑफर आए।
नूरुल में सीमेन्स को चुना। परिवार के भरण-पोषण के लिए उन्होंने यह नौकरी की। महज 1 साल में ही नुरूल ने यह नौकरी छोड़ दिया। उसके बाद भाभा एटोमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर तारापुर सेंटर में वैज्ञानिक बन गए।
नूरुल का जीवन शसंघर्षों से भरा रहा है। बतौर वैज्ञानिक भी ज्यादा दिन नहीं टिक पाए, फिर उन्होंने आईएएस बनने की ठानी। पहले प्रयास में वह प्रारंभिक परीक्षा भी पास नहीं कर पाए। इसके बाद प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास की लेकिन इंटरव्यू में वह फेल हो गए और फिर उन्हें निराशा हाथ लगी।
नूरुल के हौसले पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और एक बार फिर उन्होंने कोशिश की इस बार उन्होंने प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परिक्षा पास करने के बाद इंटरव्यू पास किया और अंततः अपने सपनों को साकार किया और बन गए आईपीएस अधिकारी। सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हजारों युवाओं के लिए नूरुल प्रेरणा के स्रोत बन गए।