महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने के लिए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत की थी। उन्होंने देश के सभी नागरिकों से इस अभियान से जुड़ने की अपील भी की थी। शुरूआत में लोग इस अभियान से जुड़े भी, लेकिन धीरे-धीरे लोग अब इस अभियान को भूल रहे हैं। लेकिन एक शख्स ऐसा भी है जो पिछले छह साल से इस मुहिम को जारी रखे हुए है। वह अपनी मेहनत की कमाई से शहर को साफ सुथरा रखने में दिन रात लगा हुआ है। ये शख्स हैं भोपाल के रहने वाले 64 वर्षीय सैफुद्दीन शाजापुरवाला।
2015 में शुरू किया था अभियान
सैफुद्दीन ने इस स्वच्छता अभियान की शुरुआत महात्मा गांधी की जयंती यानी 2 अक्टूबर 2015 को की थी। शुरुआत में वह हाथों में बैनर लेकर लोगों को स्वच्छता का संदेश देते थे। लेकिन उन्हें लगा कि इससे कुछ नहीं होने वाला है। जिसके बाद उन्होंने झाड़ू से सड़क का कचरा साफ करना शुरू किया और उस कचड़े को साइड़ में इक्कठा कर देते थे। लेकिन उन्हें लगा कि साइड में इक्कठा करने से हवा चलने के बाद वो कचड़ा फिर से सड़क पर ही पहुंच जाता है। ऐसे में उन्होंने दो बोरियां बनाई, इन बोरियों को दो रंग दिए, नीला और हरा। उन्होंने सूखा कचरा नीले बोरे में और गीला कचरा हरे बोरे में उठाना शुरू किया। सैफुद्दीन इस काम को सप्ताह में एक दिन ‘रविवार’ को करते हैं।
कई शहरों में जाकर लोगों को कर चुके हैं जागरूक
सैफुद्दीन बताते हैं कि वह सयैदना साहब से प्रभावित होकर और उनकी सीख का अनुशरण करते हुए शहर-शहर जाकर सफाई अभियान चलाते हैं। बीते छह सालों में वह अपने खर्च पर स्कूटी से मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली, इंदौर, उज्जैन सहित करीब 100 से अधिक शहर जा चुके हैं। पिछले साल वह 11 अक्टूबर को अपनी स्कूटी से मुंबई पहुंचे थे। जहां उन्होंने लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया था।
पेड़ों को भी देते हैं जीवनदान
सैफुद्दीन ने शहर की सफाई के साथ-साथ अब पिछले तीन महीनों से पड़ों को भी जीवनदान देना शुरू किया है। वे शहर में घुम-घुमकर पेड़ो से साइन बोर्ड और किल निकालते हैं। उनका मानना है कि जिस तरह से हमें कांटा लगने पर दर्द होता है उसी तरह से पेड़ पौधों को भी किल से दर्द होता है। सैफुद्दीन कहते हैं कि ज्यातार लोग उनके इस काम को प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन चंद लोग ऐसे भी हैं जो सवाल खड़े करते हैं। एक वाक्ये का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार उनसे किसी ने सवाल किया कि आपको किल निकाले का अधिकार किसने दिया है। इस पर सैफुद्दीन ने जवाब देते हुए कहा कि आपको किल ठोकने का अधिकार किसने दिया है। बस क्या था सवाल करने वाला व्यक्ति लज्जित हो गया और वो वहां से चला गया।
खर्च कैसे उठाते हैं?
साफ-सफाई और किल निकालने को लेकर होने वाले खर्च के सवाल पर सैफुद्दीन बताते हैं कि वो सप्ताह में 6 दिन वॉल पेपर का काम करते हैं। इससे उनका घर भी चलता है और बचत से स्वच्छता अभियान भी चला लेते हैं। हालांकि लॉकडाउन की वजह से उन्हें काफी नुकसान हुआ है। क्योंकि काम धंधे सब बंद थे। ऐसे में उन्होंने बुढ़ापे के सहारे के लिए जो पैसे जमा किए थे उन्हें भी खर्च करना पड़ा। सैफुद्दीन कहते हैं कि पैसे खर्च हो गए इससे मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मैं अपनी खुशी के लिए ये काम करता हूं और मरते दम तक करता रहूंगा। इस दौरान सैफुद्दीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी धन्यवाद देते हैं और कहते हैं कि गांधी जी के सपने को पूरा करने के लिए किसी राजनीतिक पार्टी ने अभी तक गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता को एक अभियान बना दिया जिसकी सराहना होनी चाहिए।
शहर को साफ रखना हमारी जिम्मेदारी
उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि कोई भी सरकार चाहकर भी गंदगी को जड़ से खत्म नहीं कर सकती। लेकिन अगर देश का हर व्यक्ति चाह जाए तो ये संभव है। ऐसे में लोग सफाई के प्रति जागरूक हो और अपने आस पास गंदगी करने से बचें। जैसे हम अपने घर को साफ रखते हैं उसी प्रकार से शहर को साफ रखना भी हमारी जिम्मेदारी है।