धंधा कोई छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता ऐसी एक कहावत है। इसी पंक्तियों को चरितार्थ किया है हल्दीराम के मालिक ने। लोगों के दिलों पर राज करने वाला हल्दीराम कभी राजस्थान के बीकानेर में छोटी सी दुकान हुआ करता था। जिसके मालिक ने अपने पुरुषार्थ के बदौलत हल्दीराम को एक ब्रांड के रूप में स्थापित कर दिया। हल्दीराम से मशहूर गंगाविषण अग्रवाल की कहानी किसी तिनके के पर्वत बनने जैसा है।
बीकानेर के गंगाविषन जी अग्रवाल एक छोटे से नाश्ते की दुकान खोली थी। यह समय आजादी के 10 वर्ष पहले यानी 1937 की है। तब दुकान का नाम “भुजियावाला” हुआ करता था जो बाद में “हल्दीराम” के नाम से मशहूर हुआ। विषण जी अग्रवाल के पिता इस दुकान में भुजिया और नमकीन बेचते थे। देखते ही देखते उनकी दुकान पूरे शहर में “भुजियावाले” के नाम से प्रसिद्ध हो गया और लोग उनकी हाथ से बनी भुजिया को काफी पसंद करने लगे।
बिज़नस को आगे बढ़ाते हुए हल्दीराम के नाम से उन्होंने अपनी दुकान दिल्ली में साल 1982 में खोली। बिजनस आगे बढ़ने लगा। लोग हल्दीराम के सामान को खूब पसंद करने लगे। अब हल्दीराम ने धंधा का विस्तार करते हुए अपने सामान को देश के बाहर भेजना शुरू कर दिया। लोग टेस्ट के दीवाने हो गए। अच्छी गुणवत्ता और स्वादिष्ट चीजें। फिर किया था देखते ही देखते मांगे बढ़ने लगी। अब विश्व के कई देशों में सामान भेजा जाने लगा।
बता दें कि हल्दीराम आज दुनिया के 50 से भी ज्यादा देशों में अपनी पहुंच रखता है। आज मार्केट में हल्दीराम के करीब 100 से भी अधिक फ़ूड प्रोडक्ट चल रहे हैं। भारत के हर घर में हल्दीराम के दीवाने मिल जाएंगे। आज की तारीख में हल्दीराम में सालाना 3.8 अरब लीटर दूध, 80 करोड़ किलो मक्खन, 62 लाख किलो आलू और तकरीबन 60 लाख किलो शुद्ध देशी घी की खपत होती है।
साल 2018 का हल्दीराम का फाइनेंशियल रेवन्यू करीब 4000 हजार करोड़ से भी ऊपर था। पिछले साल यानी साल 2020 में हल्दीराम ने 1 लाख रुपए करोड़ के टर्नओवर का कीर्तिमान स्थापित किया है। आज हल्दीराम की कहानी एक प्रेरणा है। कैसे उस जमाने में जब संचार और प्रचार प्रसार के माध्यम का अभाव था। तब सीमित संसाधनों में हल्दीराम ने वर्ल्ड वाइड अपना नाम और काम बनाया।