ये स्टोरी उन लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन सकती है जो सिविल सर्विसेज में भर्ती होकर देश और समाज की सेवा करना चाहते हैं। जो चाहते हैं कि देश भ्रष्टाचार मुक्त हो। कहानी ऐसे शख्स की है जिसका बचपन विकलांगता और परिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गया। लेकिन उसने हालातों को बैसाखी नहीं बनाया। एक से बढ़कर एक कठिनाईयां सामने आईं, उसने डटकर सामना किया। आज दुनिया उसे आईएएस रमेश घोलप के नाम से जानती है। हजारों हाथ उसकी दुआ में उठते हैं, उसे सलाम करते हैं।
बता दें कि अतिसमान्य पृष्टभूमि से आने वाले रमेश घोलाप का जन्म महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ है। जीने का सही ढंग कोई इनसे सीखे। एक ऐसा भी समय था जब इन्होंने अपनी मां के साथ चूड़ियां बेचकर अपना पेट पाला और आज वो एक आईएएस अधिकारी है। गरीबी के दिन काटने वाले रमेश ने अपनी जिंदगी से कभी हार नहीं मानी और आज युवाओं के लिए वो मिसाल बन गए हैं।
बता दें कि, वर्तमान में रमेश घोलप को उपायुक्त के पद पर झारखंड में नियुक्त किया गया है। रमेश के पिताजी अपनी पंक्चर की दुकान से 4 लोगों के परिवार का जैसे-तैसे गुजर-बसर करते थे। लेकिन ज्यादा शराब पीना उनके लिए घातक साबित हुआ और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा।
परिवार का गुजर-बसर करने के लिए मां ने आसपास के गांवों में चूड़ियां बेचना शुरू किया। रमेश और उनके भाई इस काम में मां की मदद करते थे। लेकिन किस्मत को शायद उनकी और परीक्षा लेनी थी, इसी दौरान रमेश का बाएं पैर में पोलियो हो गया।
रमेश के गांव में पढ़ाई के लिए केवल एक ही प्राइमरी स्कूल था। रमेश को आगे की पढ़ाई करने के लिए उनके चाचा के पास बरसी भेज दिया गया।
गरीबी के ऐसे दिन थे कि उनके पास अपने पिता की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए 2 रुपए भी नहीं थे। किसी तरह पड़ोसियों की मदद से वो पिता की अंतिम यात्रा में शामिल हो पाए। उनपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और 88 प्रतिशत अंक के साथ 12वीं की परीक्षा पास की।
12वीं के बाद उन्होंने शिक्षा में डिप्लोमा किया और 2009 में शिक्षक बन गए। लेकिन रमेश यहीं रुकने वाले नहीं थे।
उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और आईएएस की परीक्षा में जी-जान से जुट गए। कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार उन्होंने 2012 में सिविल सेवा परीक्षा में 287वीं रैंक हासिल की।
आईएएस रमेश घोलप की संघर्ष से सफलता तक की कहानी आज युवाओं के प्रेरणा है।