बांका-संथाल परगना काे कनेक्टिविटी प्रदान करने वाले 42 किमी लंबी सड़क काे बिहार का माॅडल प्रोजेक्ट के रूप में निर्माण किया जा रहा है, हालांकि यह बिहार की पहली सड़क होगी जिसमें नैनाे टेक्नाेलाॅजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस सड़क में 30% गिट्टी, 5% सिमेंट व 70% मिट्टी के साथ केमिकल का मिश्रण कर बेस तैयार किया जाएगा। कर इसके बाद उसमें बिटुमिन का काम हाेगा। उक्त बातें निर्माण बांका पीडब्लूडी के निवर्तमान कार्यपालक अभियंता व वर्तमान पुल निगम के प्राेजेक्ट इंजीनियर श्रीकांत शर्मा ने बताई। उन्हाेंने बताया कि बिहार का यह पहला सड़क है, जिसमें नैनाे टेक्नाेलाॅजी का उपयोग हो रहा है, यहां सफल हाेने के बाद ही सम्पूर्ण बिहार में जहां दलदली भूमि पाई जाती है,
उन क्षेत्रों में इस टेक्नाेलाॅजी का उपयोग कर हार्ड सरफेस, ताकि भूमि धंसे नहीं। साथ ही उन्होंने कहा कि इस सड़क का निर्माण कार्य उनके ही कार्यकाल में शुरू हुआ था। बांका शहर की ओर से जमदाहा तक 15 किमी में इसका प्रयाेग होगा। जिसमें 15 किमी में इस विधि का उपयोग करते हुए सड़क का निर्माण हाेने जा रहा है। बता दें कि एक किमी में अब ट्रायल भी हाेने जा रहा है। जबकि 5 किमी बसावट वाले क्षेत्रों में सड़क की चाैड़ाई करते हुए पीसीसी बन रहा है। उन्हाेंने बताया कि संथाल परगना सड़क में एनआरडीए का ही गाइडलाइन था कि सड़क निर्माण में नये टेक्नाेलाॅजी का उपयोग करना है, जिसके तहत ही इस नैनाे टेक्नाेलाॅजी का उपयोग करने का आदेश दिया गया था।
झारखंड के देवघर बिहार के बांका से सीधे कनेक्ट हो जायेगा और दूरी भी 5 किमी कम हो जाएगी। 20 किमी लंबी सड़क के निर्माण में 23 कराेड़ रुपये खर्च होंगे, जिसमें 2.5 कराेड़ का केमिकल का उपयाेग होगा। हालांकि सड़क का निर्माण कार्य करा रही मार्कण्डेय कंट्रक्शन प्राइवेट कंपनी के डायरेक्टर याेगेंद्र पांडेय का कहना है कि सड़क के निर्माण हेतु उन्हें 15 माह का समय दिया गया है, किन्तु नैनो टेक्नोलॉजी के तहत सड़क निर्माण के दौरान बरसात के वक्त काम नहीं हो पाता। अभी महेशाडीह के समीप सब बेस व बेस 30% गिट्टी व 70% मिट्टी के साथ सीमेंट व केमिकल मिलाकर तैयार कर टेस्ट किया जाएगा। जिसके बाद 15 किमी में निर्माण का प्रस्ताव है।
यदि पूरे 15 किमी में नैनो टेक्नोलॉजी के साथ काम होगा तो इसपर सिर्फ कैमिकल पर ही 2.5 करोड़ खर्च होगें। साथ ही पूरे 20 किमी सड़क को पूरा करने के दौरान 23 करोड़ का टेंडर है। आपको बताते चलें कि सीमेंट व केमिकल मिलाकर बनाने से मिट्टी की कठोरता बढ़ेगी, अन्य सड़कों की तुलना में गिट्टी का प्रयोग 70% कम होगा। जिससे खनिज की बचत होगी, जो सीमित संसाधनों की श्रेणी में आता है। प्रति किमी में लगभग 5 लाख रुपए तक की बचत होगी। वहीं सब बेस और बेस के ऊपर वाटर प्रूफ लेयर, बारीक चूरी से डामरीकरण कर फिर से वाटर प्रूफ लेयर बिछाई जाएगी। जिसका लाभ यह होगा कि वाटर प्रूफ लेयर से बारिश का पानी सड़क में आसानी से नहीं रिसेगा। ऐसे में सड़क टिकाऊ व लंबे समय तक मजबूती बनी रहेंगी।