भारत तथा नेपाल में सप्त कोसी बांध प्रोजेक्ट के अध्ययन के पश्चात इस पर आगे कदम बढ़ाने पर बात बन गई है। दोनों तरफ के वरिष्ठ अफसरों ने काठमांडू में मीटिंग की और द्विपक्षीय जल क्षेत्र सहयोग का समीक्षा किया। इस दौरान महाकाली एग्रीमेंट के क्रियान्वयन और बाढ़ प्रभावित इलाकों में मदद पर चर्चा हुई। सप्त कोसी बांध प्रोजेक्ट के पूरे होने से बिहार वासियों को बाढ़ की दिक्कत से राहत मिलेगी। यह बांध का निर्माण नेपाल में होना है और वहां से बिहार की ओर आने वाली नदी के जल को नियंत्रित किया जा सकेगा।
जल संसाधन पर संयुक्त कमिटी (जेसीडब्ल्यूआर) की नौवीं मीटिंग शुक्रवार को काठमांडू में हुई। मीटिंग की सह अध्यक्षता जल संसाधन विभाग के सचिव पंकज कुमार, जल शक्ति मंत्रालय, केन्द्र सरकार और सागर राय, सचिव, ऊर्जा, जल संसाधन तथा सिंचाई मंत्रालय ने की। इससे पूर्व 21-22 सितंबर के मध्य जल संसाधन पर संयुक्त स्थायी तकनीकी कमिटी की सातवीं मीटिंग हुई थी।
इंडियन एम्बेसी के द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि इन बैठकों में भारत तथा नेपाल के मध्य द्विपक्षीय जल सहयोग की समग्र समीक्षा की गई। इस दौरान महाकाली एग्रीमेंट के क्रियान्वयन, सप्त कोसी-सनकोसी प्रोजेक्ट और बाढ़ प्रभावित इलाकों पर मदद को लेकर चर्चा हुई। अध्ययनों के पश्चात सप्त कोसी प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ने पर बात बनी। विशेषज्ञों के एक संयुक्त दल की शीघ्र बैठक होने की संभावना है।
सप्त कोसी योजना तथा सनकोसी स्कीम के कई लाभ चिह्नित किए गए हैं। इनमें पनबिजली, बाढ़ प्रबंधन, नौका परिवहन और सिंचाई शामिल हैं। सबसे बड़ा फायदा उत्तर बिहार को बाढ़ से निजात दिलाना है। इसके बाद केंद्र सरकार के द्वारा इन कार्यों के डीपीआर बनाने के लिए अगस्त 2004 में भारत-नेपाल संयुक्त परियोजना कार्यालय (जेपीओ) की स्थापना की गई। भारत-नेपाल सचिव स्तर के जल संसाधन संबंधी संयुक्त कमिटी की काठमांडू में 7-8 अक्टूबर 2004 को दूसरी मीटिंग हुई।
इसके निर्णय के मुताबिक, कमला जलाशय योजना के संभाव्यता अध्ययन तथा बागमती जलाशय योजना के शुरुआती अध्ययन के काम संयुक्त परियोजना कार्यालय को सौंपा गया। परियोजना में देरी की बड़ी वजह सप्तकोसी हाई डैम का डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट में पुनर्वास और पुर्स्थापन मसले पर नेपाल के लोगों के द्वारा व्यवधान उत्पन्न करना भी है।