सोमवार को राष्ट्रपति भवन में पद्म श्री सम्मान समारोह आयोजित हुआ। विभिन्न क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान देने के लिए देश की महान विभूतियों को इन सम्मान से नवाजा गया। सम्मानित करने के लिए जैसे ही तुलसी गौड़ा का नाम पुकारा गया। हर कोई उन्हें ही टकटकी लगाए देख रहा था। महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तुलसी गौड़ा को पद्मश्री से सम्मानित किया। गौड़ा ने जब एंट्री मारी तो हर कोई उनकी सादगी का मुरीद हो गया। साधारण चादर पहने तुलसी गौड़ा ने बिना चप्पल पहने ही पद्मश्री सम्मान लेने आई। 6 दशकों से पर्यावरण संरक्षण में जुटीं तुलसी गौड़ा सादगी की प्रतिमूर्ति है। उनकी कहानी प्रेरणीय है।
तुलसी गौड़ा कर्नाटक के होनाली गांव से आती है। पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों की जानकारी इतनी की लोग गौड़ा को ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट’ कहते हैं। पिछले 6 दशकों से भी ऊपर से पर्यावरण बचाने के लिए गौड़ा प्रयासरत है। तुलसी कहती है कि जब मैं 20 साल की थी तभी से पेड़-पौधों को को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया। गौड़ा कहती है, ‘मैंने 20 साल की उम्र से ही काम करना शुरू कर दिया। 12 साल में मेरी शादी हो गई। 3 साल की थी तो पिता ने परिवार का साथ छोड़ दिया।
अपने जीवन काल में तुलसी गौड़ा ने कभी विद्यालय का मुंह नहीं देखा। जब नर्सरी में थी उस उम्र में ही मां के साथ काम करती रही। तभी से ही पर्यावरण के प्रति ललक जगी और अपना जीवन इसी में समर्पित कर दिया। अभी तक तुलसी गौड़ा 30 हजार से ज्यादा पौधे लगाकर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। फिलहाल गौड़ा वन विभाग की नर्सरी की देखरेख की जिम्मेदारी संभालती है। पद्मश्री से पहले भी कई अवॉर्ड से तुलसी गौड़ा सम्मानित हो चुकी है। उन्हें ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, ‘राज्योत्सव अवॉर्ड’ और ‘कविता मेमोरियल’ जैसे कई अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। तुलसी गौड़ा की कहानी आने वाली सदियों को प्रेरित करती रहेगी।