जहाँ आज के युग में स्टार्टअप पैसे कमाने के उद्देश्य से खोले जाते हैं, वैसे दौर में भी एक महिला ने भारत के ग्रामीण इलाको को सशक्त व समृद्ध बनाने के लिए गांव में कॉल सेंटर की स्थापना की। आज यह स्टार्टअप लोगों के काम के सलीके, जीने के तौर तरीके और व्यवस्था में परिवर्तन कर रहा है। रोजगार के अवसर भी उपलब्ध करा रहा है। सलोनी मल्होत्रा की कहानी हम सबको पढ़नी चाहिए।
पुणे यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग में इन्डस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई करने वाली सलोनी ने उसी वक्त ग्रामीण इलाकों के लिए कुछ करने की सोची, जब उन्हें सहपाठी कंप्यूटर साइंस की छात्रा थी। कभी कंप्यूटर का मुंह तक न देखने वाली सलोनी को उसी वक्त ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गिल्लानी महसूस हुआ। सलोनी पढ़ाई कंप्लीट होने के बाद सर्वप्रथम दिल्ली के इंटरएक्टिव मीडिया स्टार्टअप, वेबचटनी मैं काम किया। इस दौरान उन्होंने ऐसे निर्णय लिए जो वर्तमान में बीपीओ उद्योग के प्रति नजरिए को पूरी तरह से बदला जा सके।
उपभोक्ताओं को मिलने वाली अच्छी क्वालिटी के समान कम कीमत में मिलें और ग्रामीण इलाकों के लोगों को रोजगार भी प्रदान हो सके। बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध हो इसके लिए सलोनी ने देशीक्रू की शुरुआत की। देशीक्रू ने डिजिटाइजेशन सेवाओं डेटा एंट्री और डेटा कनवर्जन जैसे काम की। शुरूआत हुई। धीरे धीरे कंपनी ने कंपनी ने सामग्री निर्माण और सत्यापन जैसी सेवाओं, जीआईएस-आधारित मानचित्रण सेवाओं, प्रतिलेखन और स्थानीयकरण को जोड़ा।
मुश्किल समय और तमाम उतार चढ़ाव के बीच सफलता की कहानी गढ़ने वाली सलोनी ने तीन बिंदुओं पर गाँव, प्रौद्योगिकी और लाभ के साथ जनवरी 2005 में इसकी शुरूआत की। आधिकारिक तौर पर फरवरी 2007 में फर्म का रजिस्ट्रेशन हो गया। देशीक्रू बीपीओ की शुरुआत कर सेकंड क्लास शहरों और गांवों में बेरोजगार युवाओं को शामिल कर जरूरी ट्रेनिंग देकर रोजगार उपलब्ध कराती है।
देशीक्रू लड़कियों की शिक्षा में सुधार लाने का भी काम रही है। मुख्य रूप से महिलाओं को रोजगार मिलता है, गांव से शहरों में काम करने वाले लोगों की संख्या भी कम हो गई है। देशीक्रू समुदाय के बीच ही धन को वितरित करता है। सलोनी ने अपने काबिलियत और प्रतिभा के दम पर आज सफलता के नए आयाम को छू रही है।