आज भले ही हमारे भारत देश मे इन किन्नरों (Transgenders) को थर्ड जेंडर का दर्जा मिल चुका है। लेकिन आज भी भारतीय समाज में ट्रांसजेंडर्स को एक अलग ही नजरिए से देखा जाता है। उनके साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार किया जाता है। उन्हें हमारे भारतीय समाज में बराबरी का हक़ भी कभी नहीं दिया जाता है। इन तमाम मुश्किलों के बावजूद पिछले कुछ दशकों में कई किन्नरों (ट्रांसजेंडरों) ने अपने हक़ की लड़ाई लड़कर अपने मुकाम को हासिल किया है।
इन्हीं में से एक ज़ोया थॉमस लोबो भी हैं। ज़ोया भारत की पहली ट्रांसजेंडर फ़ोटो जर्नलिस्ट हैं। एक वक़्त था जब मुंबई की रहने वाली ज़ोया लोकल ट्रेनों में भीख मांंग कर अपना जीवन यापन करती थीं, लेकिन आज वो किन्नर समुदाय के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। आज कई लोग उनकी तरह बनना चाहते हैं।
इधर ट्रैफ़िक सिग्नल से लेकर ट्रेन में भीख माँगना हो या फिर ख़ुद के परिवार द्वारा दुत्कार देना। ज़ोया थॉमस लोबो ने हर वो दर्द सहा है जो भारत में हर एक ट्रांसजेंडर को एक न एक दिन झेलना पड़ता है। ग़रीबी के कारण वो 5वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ पाई। लेकिन ज़ोया थॉमस लोबो ने हार नहीं मानी। उनके अंदर कुछ करने की चाह थी। इसलिए उन्होंने भीख मांगकर जितने भी पैसे जमा किये थे उससे एक कैमरा ख़रीदा।
आपको बता दे कि ज़ोया लोबो को बचपन से ही फ़ोटो खींचने और खिंचवाने का बेहद शौक था। जब वो फ़ोन से फ़ोटो क्लिक किया करती थीं तो लोगों को उनकी खींची फ़ोटो बेहद पसंद आती थीं। इसके बाद ज़ोया ने प्रोफ़ेशनल फ़ोटोग्राफ़र बनने का फ़ैसला किया और अपने सेविंग के पैसों से एक सेकंड हेंड DSLR कैमरा ख़रीद लिया। अब ज़ोया के पास कैमरा तो था पर कोई काम नहीं था।
शॉर्ट फ़िल्म ने बदली ज़ोया थॉमस लोबो की ज़िंदगी
ज़ोया थॉमस लोबो की ज़िंदगी में असली बदलाव तब आया, जब उन्होंने ट्रांसजेंडर पर बनी एक शॉर्ट फ़िल्म देखी, लेकिन उसमें काम करने वाला कोई भी कलाकार असली में किन्नर नहीं था। ज़ोया ने किसी तरह फ़िल्म के निर्देशक से संपर्क किया और कहा कि उसने फ़िल्म देखी जो बेहद अच्छी लगी, लेकिन आपने किसी भी किन्नर को मौका क्यों नहीं दिया?
साल 2018 में निर्देशक ने उस शॉर्ट फ़िल्म का सीक्वल बनाया और जिसमें ज़ोया को मौका दिया। इस फ़िल्म में ज़ोया ने बेहतरीन एक्टिंग की थी। इसी दौरान ज़ोया की मुलाक़ात स्थानीय न्यूज़ चैनल के एक एडिटर से हुई। इस मुलाक़ात ने उनकी ज़िंदगी बदल दी। ज़ोया को अपनी ज़िंदगी का पहला अपॉइनमेंट लेटर मिला और उन्होंने फ्रीलांस जर्नलिस्ट के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की।
लॉकडाउन ने दी ज़ोया थॉमस लोबो को नई पहचान
इधर साल 2020 में हुए लॉकडाउन के दौरान जर्नलिस्ट होने के नाते ज़ोया ने अपने कैमरे में प्रवासी मज़दूरों का दर्द बख़ूबी क़ैद किया. इस दौरान उनकी कई तस्वीरों को बेहद पसंद किया गया। इन्हीं तस्वीरों ने ज़ोया को एक अलग पहचान दी। आज फ़ोटो जर्नलिस्ट के तौर पर ज़ोया लोबो का नाम ही काफ़ी है।
ज़ोया की कुछ कर दिखाने की ज़िद्द ने ही उन्हें आज एक फ़ोटो जर्नलिस्ट तो बना दिया है। लेकिन अब उन्हें एक फ़ुल टाइम नौकरी की ज़रूरत है।