जिद, जुनून और जज्बा जिस इंसान के अंदर घर कर जाता है, यकीनन सफलता उसके कदमों को चूमती है। तमाम मुसीबतों के बाबजूद भी जिनके हौंसले फौलाद की तरह बुलंद रहते हैं, उनके सपने जरूर साकार होते है। प्रदीप सिंह की कहानी ऐसी ही संघर्षों से भरी–पड़ी है।
बिहार में जन्मे प्रदीप बाद में पिता के साथ इंदौर शिफ्ट हो गए थे। प्रदीप के पिताजी इंदौर में ही देवास नगर के डायमंड पेट्रोल पंप पर काम करते थे। मां गृहणी थी और भाई निजी कंपनी में काम करते थे। प्रदीप कहते हैं तीनों ने मेरा हर मुश्किल समय में साथ दिया। आर्थिक स्थिति इतनी भी अच्छी नहीं थी की प्रदीप की कोचिंग की फीस भरी जा सके। लेकिन प्रदीप के पिताजी ने गोपालगंज की पुश्तैनी जमीन बेच दी।
प्रदीप बताते हैं कि मेरे से ज्यादा संघर्ष मेरे परिवार ने किया। जो मूल्य संपति के रूप में इंदौर का मकान था। पिताजी ने पढ़ाई के लिए उसको भी बेच दिया। तभी से प्रदीप ने यूपीएससी परीक्षा पास करने की ठान ली और परीक्षा पास कर के ही दम लिया।
प्रदीप सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के लिए जून के महीने में 2017 में दिल्ली आते हैं, जहां उन्होंने वजीराव कोचिंग ज्वॉइन की। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रदीप कभी नहीं पीछे मुड़कर देखा। फिर पहले ही प्रयास में AIR 93 हासिल की और बन गए महज 22 साल की उम्र में आईएएस अधिकारी।
फिलहाल प्रदीप बिहार के पटना जिला में सहायक दंडाधिकारी के तौर पर कार्यरत हैं। उनकी लिखी पंक्तियां भी खूब पसंद की जाती है- “ख्वाहिशों का मोहल्ला बहुत बड़ा होता है, बेहतर है हम जरूरतों की गली में मुड़ जाएँ।”