सहकारी बैंकों के संचालन के लिए केंद्र सरकार ने वर्तमान नियावाली में कई बदलाव किए हैं, अगर ऐसा होता है तो बिहार में एक भी सहकारी बैंक का अस्तित्व नहीं बचेगा। राज्य के पैक्स अध्यक्षों को धान खरीदना भी मुश्किल हो जाएगा। सहकारी बैंक की परेशानियों का अध्ययन होगा। निदेशकों की नियुक्ति के लिए पूर्व में ही नियम में बदलाव के चलते समस्या उत्पन्न हुई है।
बिहार दौरे पर आए केंद्रीय सहकारिता सचिव को विभाग के आला अधिकारियों ने तमाम समस्याओं से रूबरू कराया। केंद्रीय सचिव ने समस्याओं से अवगत होने के बाद नई कमेटी बनाने का निर्णय लिया है। इन समस्याओं का अध्ययन करने के लिए गुजरात की बैकुंठ मेहता सहकारी समिति कमेटी का प्रतिनिधित्व करेगी। शीघ्र ही इसके सदस्य समितियों का मनोनयन कर अध्ययन का काम शुरू कर देंगे।
बता दें कि राज्य के पैक्स धान या गेहूं की खरीदारी के लिए सहकारी बैंकों से ही कर्ज लेते हैं। भले ही के कर्ज की गारंटी सरकार लेती है लेकिन आगे काम करने के लिए चुकता उन्हें ही करना पड़ता है। मौजूदा जो व्यवस्था है उसमें कर्ज को चुकाने के बाद बैंक का शेयर वापस करने का नियम है। इससे उनकी पूंजी नहीं फंसती है। लेकिन नई व्यवस्था में यह प्रावधान नहीं रहेगा। ऐसे में कोई पैक्स अपनी पूंजी फंसा कर धान या गेहूं की खरीदारी के लिए कर्ज नहीं लेगा और खरीद भी नहीं हो सकेगी।