बिहार विश्वविद्यालय के लंगट सिंह कॉलेज में बन रहे भोजपुरी शब्दकोश में बिहार के साथ ही दूसरे राज्यों के जिन भागों में भोजपुरी बोली जाती है, उनके शब्द भी रहेंगे। विभाग के अध्यक्ष प्रो० जयंतकांत सिंह ने जानकारी दी कि झारखंड के पलामू और गढ़वा के लोग भोजपुरी बोलते हैं। उड़ीसा के राऊ में भी भोजपुरी बोली जाती है लेकिन वहां की भोजपुरी यहां की भोजपुरी से मेल नहीं खाती। उन्होंने बताया कि इन इलाकों में शब्दकोश बनाने के लिए हम लोग जाएंगे और वहां की भोजपुरी के शब्दों और अर्थ पर अध्ययन करेंगे। वहीं, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में लोग भोजपुरी भाषा का प्रयोग करते हैं। वहां के शब्दों को भी जोड़कर शब्दकोष को विस्तार दिया जाएगा।
बता दें कि एलएस कॉलेज के भोजपुरी डिपार्टमेंट में भोजपुरी साहित्य का इतिहास भी लिखा जा रहा है। यह इतिहास साल 1980 से बाद भोजपुरी गद्द साहित्य में आए बदलाव और प्रवृत्तियों के विषय में है। विभागाध्यक्ष ने जानकारी दी कि 1980 के बाद भोजपुरी साहित्य के कई लेखक सामने तो आए लेकिन उनके बारे में विशेष जानकारी नहीं है। विभाग ऐसे लेखकों के बारे में जानकारी जुटा रहा है।
डॉ जयकांत सिंह बताते हैं कि भोजपुरी के शब्दों के अर्थ देशज होते हैं। कई लोग खरकटल शब्द का मायने नहीं समझते हैं। इसे भी शब्दकोश में जोड़ा है। इसका मायने होता है खाने के बाद जो जूठा कड़ा हो जाता है। रकटल शब्द को जोड़ा है। इसका अर्थ होता है ख्वाहिश है पर वह चीज मिल नहीं रही है। बता देगी भोजपुरी का पहला शब्दकोश मोतिहारी में साल 1940 में लिखी गई थी। पंद्रह सौ शब्दों में लिखे गए डिक्शनरी को एलसेन जोसेफ ने लिखा था।