बिहार के कई उत्पादों को अभी तक जी आई टैग मिल चुका है। वहीं, नालंदा की बावन बूटी, गया के पत्थर शिल्प, भोजपुर के खुरमा और सीतामढ़ी की बालूशाही को भी जीआई टैग मिलने की उम्मीद जग गई है। हस्तशिल्प उत्पादों को जीआई टैग दिलवाने वाले पद्मश्री से सम्मानित डॉ रजनीकांत ने नाबार्ड द्वारा जीआई टैग पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि जीआई टैग दिलाने के लिए ही मुझे पद्मश्री दिया गया है। उन्होंने कहा कि बिहार के वस्तुओं को जीआई टैग दिलाने के लिए सरकार के साथ ही राज्य की दूसरी एजेंसियों को भी इसके लिए पहल करनी होगी।
हस्तशिल्प उत्पाद के प्रमुख संस्थान उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के प्रमुख अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि संस्थान टिकुली और गया का पत्थर शिल्प को जीआई टैग दिलाने के लिए भरसक प्रयास करेगी। वहीं नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक डॉ सुनील कुमार ने कहा कि बिहार की वस्तुओं को जीआई टैग दिलवाने के लिए तकनीकी और आर्थिक सहायता देने के लिए भी हम पूरी तरह तैयार है।
बता दें कि बिहार के शाही लीची, भागलपुर के जर्दालू आम, कतरनी चावल, महगी पान, मधुबनी पेंटिंग, सिलाव खाजा और भागलपुरी सिल्क को भी जीआई टैग मिल चुका है। आने वाले समय में मिथिला मखाना को जीआई टैग मिलने वाला है। बता दें कि भौगोलिक क्षेत्र में विशिष्ट रूप से उत्पादित वस्तुओं को ही जीआई टैग प्रदान किया जाता है जिसके बाद कोई भी दूसरा राज्य इस पर दावा नहीं कर सकता है।