बिहार के अविनाश, सहरसा की गलियों से निकल कर तय किया The Lallantop न्यूज एजेंसी तक का सफर

पत्रकारिता करने वाले छात्र या पत्रकारिता मे काम कर रहे लोगों की ये ख्वाहिश होती है कि देश के टॉप मीडिया कंपनी में काम करने का मौका मिले। ये कहानी है, सहरसा (बिहार) के सिमरी बख्तियारपुर के छोटे से गांव से आने वाले अविनाश आर्यन की जिन्होंने जीवन में तमाम उतार–चढ़ाव के बाबजूद पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब देश की टॉप मीडिया कंपनी में से एक इंडिया टूडे की इकाई लल्लनटॉप में बतौर स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट ज्वाइन किया है।

1995 में बिहार के सहरसा में जन्मे अविनाश बचपन से ही लिखने के शौकीन रहे हैं। अविनाश पटना के बीडी पब्लिक स्कूल से बारहवीं की पढ़ाई के बाद दिल्ली निकल पड़े। दिल्ली में इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के एंट्रेस एग्जाम दिया, मन मुताबिक कॉलेज ना मिलने के बाद, अविनाश ने प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लिया।

अविनाश ने शुरुआती दिनों में 1500 रूपए का एक कमरा लिया। मां आंगनबाड़ी सेविका थी। उसी में से पैसा बचाकर मिलते, उसी से अविनाश का खर्चा निकलता था। कभी कम पड़ता तो मामा से कुछ पैसे लेकर काम हो जाता था। अविनाश फर्स्ट ईयर में थे तभी उनकी मां दुनिया को छोड़ कर चली गई। अब अविनाश पूरी तरह टूट चुके थे। फिर भी अविनाश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

मां के जाने के बाद अविनाश ने इंग्लिश कंटेंट राइटिंग की नौकरी की, इसके बदले में महीने के 13 हजार मिलते थे। कुछ ना कुछ पाने की चाहत में अविनाश पढ़ाई को बीच में छोड़कर नौकरी के लिए मुंबई चले गए। वहां जाने के बाद किस्मत बदली और लाइफस्टाइल भी।

अविनाश बताते हैं– “पैसों से रिश्ते को बनते बिगड़ते देखा है, पैसों के लिए उनकी मां को खरी-खोटी सुनाया करते थे।” इसीलिए अविनाश के अंदर पैसों के लिए दिवानगी रही है। बंबई से नौकरी छोड़ अविनाश ने दिल्ली में वन–इंडिया ज्वाइन किया।
यहां काम करने के दौरान ही अविनाश ने अपने बलबूते नोएडा में अपना घर बना लिया। रेस्टोरेंट भी खोला लेकिन शुरुआती कुछ महीने चलने के बाद वो भी लॉकडाउन में बंद गया।

अब अविनाश ने देश की टॉप मीडिया इंडिया टूडे की स्वामित्व
वाली कंपनी लल्लनटॉप में खुद को स्थापित कर लिया है और बन गए युवाओं के चहेते।

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