आज आपको बताने जा रहे हैं कि बिहार को उत्पादक राज्य बनाने की कितनी उम्मीदें हैं। हर चीज के निर्माण में सरिया का इस्तेमाल किया जाता है। छोटे टैंक से लेकर बड़े पुल और बड़ी भवनों के निर्माण में इसकी आवश्यकता पड़ती है। इसके बिना निर्माण करना तो दूर कल्पना भी नहीं किया जा सकता है। लेकिन जरूरत के मुताबिक यहां आधा उत्पादन भी नहीं हो पाता है, जबकि प्रदेश में उत्पादित सरिया दूसरी कंपनी के मुकाबले गुणवत्ता के मामले में भी बढ़िया है। बड़ी कंपनी के उत्पाद की कीमत ज्यादा है जिसके चलते वह आम लोगों के रेंज से बाहर है।
एक मोटे अनुमान के हिसाब से प्रदेश में हर महीने 2 लाख टन सरिया की खपत की जाती है। प्रदेश में मगध, बाल मुकुंद और कामधेनु सहित कई अन्य कंपनियों के सरिया सबसे ज्यादा बिकते हैं। उत्पादक कहते हैं कि प्रदेश में हम डिमांड और आपूर्ति के बीच की कमी दूर कर लेते हैं तो बाहर से सरिया मंगाने की जरूरत अपने आप कम जाएगी। शाहनवाज हुसैन जो राज्य सरकार के उद्योग मंत्री हैं, उनका कहना है कि प्रदेश में उत्पादित सामानों को खरीद को प्राथमिकता दिया जा सकता है। यहां मैं कि नहीं बिहार आंदोलन में होना चाहिए अगर यह होता है तो निश्चित रूप से उत्पादकों को बड़ा लाभ मिलेगा।
सरिया उत्पादन क्षेत्र के व्यापारी कहते हैं कि अभी तक उन्हें सरकारी सहायता मिला है वह संतोषजनक नहीं है। कामधेनु सरिया के प्रबंध निदेशक विनय कुमार सिंह ने कहां की उत्पादन प्लांट की स्थापना कु कल्पना भी नहीं कर रहे हैं। बिहार के अपनी संरचना को किसी अन्य राज्य में स्थानांतरित करने के बारे में हम सोच रहे हैं। बिहार की नीति के मुकाबले झारखंड की नीति अत्यधिक लाभकारी लग रहा है।
बिहार में डीवीसी से बन रहा बिजली बिहार के मुकाबले प्रति यूनिट एक रुपया सस्ता है। इससे सरिया के उत्पादन में कम लागत आती है। झारखंड में सरिया उत्पादन करने में बिजली कोष में एक टन सरिया में 800 रुपए की बचत होगी। लागत कम होने से सामान भी सस्ता होगा जिससे ग्राहक भी आकर्षित होंगे। विनय कुमार सिंह कहते हैं कि महंगी बिजली के मामले में सीएम नीतीश कुमार से भी प्रतिनिधि मंडल ने मुलाकात की है लेकिन लंबे वक्त से अभी तक कोई लाभ नहीं मिल सका है। अब यही ऑप्शन आ गया है कि झारखंड या दूसरे राज्य में जाएंगे।
बता दें कि बिहार में सरिया का उत्पादन होता है तो डायरेक्ट रूप से बड़े स्तर पर लोगों को रोजगार उपलब्ध होगा। फैक्ट्री के आसपास के इलाके में भी सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है। इसके अतिरिक्त रिटेलर, होलसेलर और ट्रांसपोर्ट सहित बड़ी तादाद में इस कारोबार पर व्यवसाय निर्भर रहते हैं।
बिजली की रेट सस्ती करने के मूड में सरकार नहीं है लेकिन इस पर मंथन कर रही है। बिहार सरकार के द्वारा पूरे देश में बिजली कीमत समान करने की मांग की गई है। अगर ऐसा होता है तो कारोबारियों को बिजली सस्ती दर में मिलेगी और उनकी मांग पूरी होगी। सरकार के साथ समस्या यह है कि खुद महंगी कीमत में बिजली खरीदती है।
एक रिपोर्ट के अनुसार स्टील की घरेलू डिमांड में भी जबरदस्त इजाफा हो रहा है। 2021-22 में यह डिमांड 37 से 39 लाख टन थी। अगले तीन सालों में 6.6-7.5 फीसद चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि रेट से मांग बढऩे की उम्मीद है। अनुमान के अनुसार 2025 तक 46-48 लाख टन उत्पादन की उम्मीद है। घरेलू मार्केट में डिमांड से राज्य के उत्पादकों को भी विस्तृत बाजार मिलने की उम्मीद है।
बिहार की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार धातु या सरिया धातु के दूसरे उद्योग में कम से कम इन्वेस्ट हो रहा है। डिमांड बढ़ी है। बाजार में बाहर के उत्पाद आ रहे हैं। स्थानीय उद्यमियों की फिर भी दिलचस्पी कम है या समझ कि ना के बराबर है। उद्यमियों की अरुचि का नतीजा है कि वित्तीय साल 2020-21 में इस सेक्टर में केवल एक प्लांट की स्थापना हुई। 2 करोड़ 11 लाख रुपये का इन्वेस्ट हुआ। (स्त्रोत- दैनिक जागरण)