फैशन इंडस्ट्री जैसे चमचमाती दुनिया को छोड़ ग्रामीण इलाकों के महिलाओं को रोजगार देने वाली बनारस के शिप्रा की यह कहानी लोगों के लिए मिसाल है। शिप्रा के पास फैशन इंडस्ट्री में 18 साल का लंबा अनुभव है। बाबजूद इसके उन्होंने इसे छोड़ ग्रामीण भारत के लिए काम करना शुरू कर दिया। बनारस के 8 गांव की महिलाओं को साथ लाकर प्रभुती इंटरप्राइजेज फॉर्म की शुरुआत की, इसमें वह 15 तरह के विभिन्न उत्पादों को तैयार कर बाजार में बेचती है। आसपास के ग्रामीण इलाकों के 350 से ज्यादा महिलाएं यहां काम करती है।
बनारस की शिप्रा बताती है, पिताजी भारतीय सेना में जवान थे, उस वक्त परिवार नोएडा में रहता था। 12वीं की पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई डिस्टैंस से की। एक साल का डिजाइनिंग कोर्स होने के काम करना शुरू कर दिया। साल 1992 में कंपनियों के लिए डिजाइनिंग करना शुरू कर दी, धीरे-धीरे काम बढ़ता रहा। इस दौरान अलग-अलग कोर्स भी कंप्लीट की। कई सालों तक डाइनिंग क्षेत्र में काम करने बाद शिप्रा भारत के विभिन्न शहरों में रही, वहां के कामों को बारीकी से सीखा और दूसरे को भी सिखाया। धीरे-धीरे तजुर्बा बढ़ता गया और उन्होंने यह अहसास किया कि फैशन इंडस्ट्री प्रदूषण इंडस्ट्री से भरा पड़ा है। फिर उन्होंने इसे छोड़ साल 2010 में बनारस शिफ्ट होने का फैसला लिया।
धार्मिक नगरी बनारस भारत के प्रमुख शहरों में से एक है, बनारस का दर्शन करने लाखों पर्यटक आते हैं। बनारस की महत्व को समझते हुए उन्होंने यहां स्टार्टअप करने का फैसला लिया। यहां की महिलाएं जपमाला और कई तरह के माला बनाती है, शिप्रा ने भी यह कोर्स किया था। लिहाजा उन्होंने इस व्यवसाय को धरातल पर लाने की कोशिश की। माला इंडिया के नाम से बिजनेस की शुरुआत करी, शुरुआत में 100 महिलाओं को अपने साथ जोड़ा। अपने बनाए गए उत्पाद को देश के साथ-साथ विदेश में निर्यात करने लगी। हर घर के लोगों को जोड़ने के उन्होंने प्रभुती इंटरप्राइजेज की शुरुआत की। ग्रामीण इलाकों में लगभग हर घर में गाय भैंस होते हैं, इनका दूध और घी भी अच्छी क्वालिटी का होता है। लिहाजा शिप्रा ने शुद्ध घी, दूध से निर्मित उत्पादों को बनाकर मार्केट में सप्लाई करना शुरू कर दिया।
बनारस के आसपास के इलाकों में किसान थोड़ा-बहुत रागी, ज्वार, चौलाई की भी खेती करते हैं। शिप्रा ने किसानों के उपज से ही काम देकर दूध से निर्मित उत्पादों के बाद अनाजों के कुकीज बनाने का फैसला लिया, लोगों का फीडबैक भी अच्छा रहा। देसी घी के डिमांड धीरे-धीरे बढ़ती गई, लोगों का भी अच्छा रिस्पांस मिला। फिर फॉर्म का रजिस्ट्रेशन हुआ और आज इसके जरिए लगभग 300 परिवारों का घर चल रहा है। इंटरप्राइजेज में सामान्य देशी घी के साथ एक ब्राह्मी घी और शतावरी घी बन रहा है।
शिप्रा ने साल 2018 में बीएचयू के स्टार्टअप प्रोग्राम के तहत मिलने वाले 5 लाख रुपए की ग्रांट मनी ली थी। आस-पास के गांवों में इन पैसों से यूनिट सेटअप होने से 700 से 800 महिलाओं को रोजगार मिलेगा। बनारस के अलावा दिल्ली नोएडा में भी बनी हुई प्रोडक्ट की सप्लाई होती है। फॉर्म का अपना एक स्टोर भी है, जहां दो हजार से ज्यादा ग्राहक जुड़े हुए हैं। शिप्रा कहती है, यहां काम करने वाली महिलाएं महीने के तीन हजार से दस हजार रुपए के बीच कमाती है। जिस हिसाब से आर्डर मिलता है, उसी हिसाब से महिलाएं काम करती है। पिछले साल का टर्नओवर 25 लाख रुपए था।