जिद, जुनून और जज्बा जिस इंसान के अंदर घर कर जाता है, यकीनन सफलता उसके कदमों को चूमती है। तमाम मुसीबतों के बाबजूद भी जिनके हौंसले फौलाद की तरह बुलंद रहते हैं, उनके सपना जरूर साकार होते हैं। ऐसी ही एक संघर्ष की कहानी है की है श्वेता अग्रवाल की, इनके पिता किराने की दुकान पर काम कर इन्हें पढाया और बेटी अपने प्रतिभा के बलबूते बन गई कामयाबी की मिसाल।
श्वेता अग्रवाल हुगली (पश्चिम बंगाल) से बिलॉन्ग करती है। परिवार में सदस्यों की संख्या काफी ज्यादा थी। पिता दूसरे की दुकान में काम कर परिवार का गुजर-बसर करते थे। पिता की ख्वाहिश थी कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर कुछ बड़ा बनें। इसलिए उन्होंने जो काम मिले उन कामों को कर श्वेता की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ा। घर की माली हालातों के बावजूद उन्होंने श्वेता का एडमिशन कोलकाता के सेंट जोसेफ में करा दिया।
श्वेता की गिनती शुरू से ही मेधावी छात्रों में होती थी। सेंट जेवियर्स कॉलेज (कोलकात्ता) में दाखिला लिया और वो इस कॉलेज की टॉपर स्टूडेंट रही। पढ़ाई कंप्लीट होने के बाद एक निजी कंपनी में जॉब भी लगा। कुछ दिनों जॉब करने के बाद उन्होंने इसे छोड़ दिया। इसके पीछे कारण था कि आईएएस बनने की हार्दिक इच्छा थी।
घर और परिवार से शादी का दबाव, इसके बीच यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करना श्वेता के लिए काफी मुश्किल वक्त था। लेकिन उन्होंने अपने लक्ष्य पर अपना ध्यान केंद्रित रखा और जमकर सिविल सर्विसेज की तैयारियों पर अपना ध्यान दिया और फिर परीक्षा दी। साल 2013 के परिणाम में 497वीं रैंक हासिल हुई। मन पसंद पोस्ट ना मिलने के बाद उन्होंने फिर परीक्षा देने की ठानी।
आईएएस बनने की इतनी ख्वाहिश थी, कि साल 2015 में भी 141 वीं रैंक मिलने के बाद मनपसंद पोस्ट ना मिला फिर श्वेता ने फिर परीक्षा देने का मन बनाया। साल 2016 श्वेता के लिए खुशियों से भरा था, यूपीएससी के जारी परिणाम में 19वीं रैंक मिला। इस तरह श्वेता बन गई आईएएस अधिकारी। उनकी यह स्टोरी शानदार और कुछ कर गुजरने वाले लोगों के लिए प्रेरणा से कम नहीं है।