अभी के समय में हमारा देश भारत प्रत्येक वर्ष अरबों रुपये खर्च करता है, चीन और जापान से मोती को भारत में आयात करने में।एक मीडिया इंडियन मिरर की रिपोर्ट के अनुसार, Central Institute of Freshwater Acquaculture (CIFA) के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में भी अंतर्देशीय संसाधनों के माध्यम से बहुत ही अच्छी गुणवत्ता वाले मोती का उत्पादन करना भी संभव है।
हम यहाँ इस लेख में आपको बताने जा रहे हैं राजस्थान में मोती की खेती करने वाले एक ऐसे ही किसान के बारे में जिससे मोती की खेती के गुण सीख आप भी मोती की खेती कर सकते हैं और मोटा लाभ भी कमा सकते हैं।
राजस्थान के किशनगढ़ के नजदीक रेनवाल के मूल निवासी नरेंद्र कुमार गरवा जिनकी उम्र 45 वर्ष है। उन्होंने B.A. की पढ़ाई पूर्ण की और बीते 10 वर्षों से अपने पिता जी के साथ एक किताब की दुकान का संचालन करते है और इसी के साथ ही वे मोती की खेती भी करते हैं।
जानें कैसे होती है मोती की खेती
नरेंद्र दो तरीके से मोती की खेती करते हैं – डिजाइनर और गोल – जिन्हें क्रमशः पूर्ण रूप से विकसित होने में 1 साल और 1.5 साल का वक्त लगता हैं।
साथ ही नरेंद्र 10 × 10 फीट के क्षेत्र में मोती की खेती करने के लिए 40 हजार रुपये का इन्वेस्टमेंट किया था, जो नरेंद्र को प्रत्येक साल ज़ीरो रखरखाव के ही साथ लगभग 4 लाख रुपये का लाभ देता है।
नरेंद्र ने अपने आवास में कृत्रिम कंक्रीट के तालाब जो कि लगभग5 फीट गहरा होता है उसका निर्माण किया और सर्जरी के सामान, दवाइयाँ, अमोनिया मीटर, Ph मीटर, थर्मामीटर, दवाएं, एंटीबायोटिक्स, माउथ ओपनर, पर्ल न्यूक्लियस जैसे उपकरण खरीदे। जिसके पश्चात, नरेंद्र ने मसल्स, गोबर, यूरिया और सुपरफॉस्फेट से शैवाल हेतु खाना तैयार किया।
तालाब में पूर्ण रूप से स्थानांतरित होने से पूर्व मसल्स को नए पानी में पूरे 24 घंटे के लिए रखा जाता है। एक बार वहाँ, उन्हें मृत्यु दर को निर्धारित करने या कम करने के लिए15 दिनों हेतु खाना दिया जाता है। एक बार जब उनकी आवश्यकता पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाती है, तो नाभिक डालने का प्रोसेस शुरू किया जाता है।
इधर नरेंद्र बताते हैं, “पर्ल न्यूक्लियस को हर एक मसल्स के अंदर सावधानी के साथ डालना होता है और पानी में अच्छे से डुबोया जाता है ( लगभग 15 से 30℃ के तापमान पर)। शैवाल को मसल्स हेतु खाने के रूप में जोड़ा जाता है। एक साल के पश्चात, नाभिक मोती के गोले से कैल्शियम कार्बोनेट एकत्रित करने के लिए एक मोती थैली देता है। जिसके पश्चात नाभिक इसे कोटिंग की सैकड़ों परतों के साथ ही पूर्ण रूप से कवर करता है जो की अंत में उच्च कोटि का मोती बनाता है।”
तो वहीं तालाब को बनाए रखने हेतु कोई अलग से मौद्रिक खर्च नहीं है,बस किसी को सतर्क रहना होगा और जल स्तर, मसल्स का स्वास्थ्य, शैवाल की उपस्थिति और बाकी सभी चीजें नियम अनुसार सुनिश्चित करते रहना होगा।
साथ ही नरेंद्र ने मृत्यु बाद दर को कम करने के लिए Ph स्तर 7-8 के मध्य ही रखने की सलाह दी, “यदि अमोनिया ज़ीरो नहीं है, तो 50 % जल को परिवर्तित करे या स्तरों को बढ़ाने के लिए चूना (चूना) का घोल मिलाएँ। सबसे आवश्यक बात, आपको एक वर्ष के लिए धैर्य रखना होबाद, नरेंद्र उन्हें एक प्रयोगशाला में भेजते हैं। गुणवत्ता के आधार पर, एक मोती 200 रुपये से 1,000 रुपये के बीच बेचा जागा।
मोती तैयार होने के पश्चात, नरेंद्र उन्हें एक प्रयोगशाला में भेजते हैं। जिसके पश्चात गुणवत्ता के स्तर पर, एक मोती 2 सौ रुपये से 1 हजार रुपये के बीच बिक्री किया जा सकता है।