जैसा कि हम सभी देखते है कि गेहूं की प्रोसेसिंग करते समय बचने वाले चोकर या भूसे (Wheat Bran) को अक्सर हम सभी फेंक देते हैं या कभी-कभी तो पशुओं को भी खिला देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि यह चोकर स्वास्थ्य के दृष्टि से बहुत ही लाभदायक होता है। चोकर वाले आटे में फाइबर और पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है जिससे वजन कम होता है और ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है। इसलिए अक्सर लोगों को सलाह दी जाती है कि चोकर को फेंकने की बजाय, इसे आटे में मिलाकर इसकी रोटियाँ बनायी जाएँ। पर अगर रोटियाँ बनाने के साथ-साथ चोकर से ‘सिंगल यूज बर्तन’ भी बनाए जाए तो? जी हाँ आपने सही सूना अब चोकर से सिंगल यूज बर्तन भी बनाए जा सकते हैं।
केरल के एर्नाकुलम में रहने वाले विनय कुमार बालाकृष्णन ने CSIR- नैशनल इंस्टिट्यूट फॉर इंटरडिसिप्लिनरी साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (NIIST) के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर चोकर से बायोडिग्रेडेबल सिंगल यूज क्रॉकरी बनाने की तकनीक विकसित की है। वह चोकर से ऐसी खाने के प्लेट्स बना रहे हैं, जिन्हें इस्तेमाल के बाद खाया जा सकता है। अगर कोई इन्हें खाना नहीं चाहता तो इन्हें जानवरों के चारे के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर आपके आसपास जानवर भी न हों तो आप इन्हें कहीं भी मिट्टी में या जंगल में फेंक सकते हैं। कुछ दिनों में ही ये डिस्पोज हो जाएंगे।
इस इको-फ्रेंडली और ‘एडिबल’ सिंगल यूज क्रॉकरी को विनय कुमार ‘तूशान‘ (Thooshan) ब्रांड नाम से बाजार तक पहुँचा रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने अपने इस पूरे सफर के बारे में बताया।
विनय कुमार कैसे शुरू हुई कहानी
आपको बता दे कि विनय कुमार ने कई सालों तक बैंकिंग सेक्टर और इंश्योरेंस कंपनी में काम किया है। साल 2013 तक वह मॉरीशस में एक इंश्योरेंस कंपनी में बतौर CEO काम कर रहे थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने मॉरीशस की नौकरी छोड़ दी और अपने देश लौट आए। वह बताते हैं, “बात अगर बायोडिग्रेडेबल ‘प्लेट’ की आए तो केले के पत्ते से बेहतर क्या होगा? सदियों से हम, खासकर कि केरल में केले के पत्ते का उपयोग खाना खाने के लिए किया जा रहा है। यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। इसलिए मुझे लगा कि इस ‘कॉन्सेप्ट’ पर चलते हुए हम और क्या कर सकते हैं। हमारा ब्रांड नाम भी इसी से आया है। मलयालम में केले के पूरे पत्ते को ‘तूशनिला’ (Thooshanila) कहते हैं और उसी से हमने ‘तूशान’ शब्द लिया।”
आज से लगभग एक-डेढ़ साल की रिसर्च और डेवलपमेंट के बाद विनय कुमार को इस प्रयास में सफलता मिली। गेहूं के चोकर से प्लेट बनाने की मशीन भी उन्होंने खुद ही विकसित की। विनय कुमार कहते हैं कि यह मशीन ‘मेड इन इंडिया (Made in India)’ है क्योंकि मशीन का हर एक कल-पुर्जा भारत की ही अलग-अलग कंपनियों द्वारा तैयार किया गया है। उन्होंने इस तकनीक के लिए CSIR-NIIST के साथ एमओयू साइन किया। लैब में प्रोटोटाइप तैयार होने के बाद, उन्होंने सभी तरह के टेस्ट भी किए हैं और अब उनके उत्पाद बाजार में पहुँचने के लिए तैयार हैं।
क्यों हैं यह ‘एडिबल’ क्रॉकरी ख़ास
आपको भी पता होगा कि पिछले कई सालों से सरकार ‘सिंगल यूज प्लास्टिक क्रॉकरी’ की समस्या को हल करने के लिए प्रयास कर रही है। क्योंकि इससे कचरे और प्रदूषण दोनों कम किया जा सकता हैं। लेकिन यह तभी सम्भव हो पाएगा जब हमारे पास प्रकृति के अनुकूल कोई विकल्प हो और विनय कुमार अपनी ब्रांड के ज़रिए यही विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं। विनय कुमार कहते हैं कि फिलहाल, वह प्लेट बना रहे हैं और इसके बाद, पैकेजिंग कंटेनर, कटलरी, कटोरी आदि की मैन्युफैक्चरिंग पर काम करेंगे। गेहूँ के चोकर से बनी इन प्लेट्स को माइक्रोवेव में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
तो आईए, जानते हैं विनय कुमार के प्लेट का उपयोग
इस प्लेट को इस्तेमाल करने के बाद खाया जा सकता है।
अथवा पशुओं के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
जमीन में दबाने पर यह प्लेट कुछ ही दिनों में आसानी से डिस्पोज हो जाती हैं।
अगर इन्हें जंगल में फेंका जाए तो ये पेड़-पौधों के लिए खाद का काम करती हैं।
हम सभी के लिये विनय कुमार का यह आविष्कार न सिर्फ पर्यावरण की दृष्टि से बल्कि कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने में भी कारगर साबित होता दिख रहा है। फिलहाल, वह मिलों से गेहूं का चोकर ले रहे हैं। लेकिन आगे उनकी योजना सीधा किसानों से जुड़कर काम करने की है।