सफलता किसी शोहरत और परिचय की मोहताज नहीं होती इसे चरितार्थ किया है इस आदिवासी छात्रा ने। अत्यंत पिछड़े इलाके से आने वाली आदिवासी छात्रा शांगवी ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट में सफलता हासिल कर कामयाबी की मिसाल पेश कर दी है। गांव की पहली 12वीं पास छात्रा शांगवी ने दूसरे प्रयास में सफलता पाई है। इस दौरान उन्होंने स्टेट बोर्ड की किताबें और एनजीओ से सहायता लिया तब जाकर उन्हें सफलता मिली। इनकी प्रेरणादायक कहानी हम सभी को पढ़नी चाहिए।
शागंवी कोयंबटूर के दूरदराज इलाके के आदिवासी समुदाय से आती है। 40 परिवार वाले गांव में शांगवी 12वीं पास पहली छात्रा है। शागंवी जिब समुदाय से आती है उस समुदाय में डॉक्टर बनना तो दूर लोग नर्स बनने तक का नहीं सोचते है। ऐसे में पिता के गुजरने के बाद भी शागंवी का डॉक्टर बनने की राह पर अग्रसर रहना अपने आप में बड़ी बात है। कोरोना काल में पिता को खोने के बाद जब मां की आंखों की रोशनी चली गई तब उन्होंने डाक्टर की कमी को महसूस किया। स्टेट बोर्ड की किताबें और एनजीओ से मदद लेकर नीट की परीक्षा में जुट गई।
शागंवी ने दूसरे प्रयास में नीट में सफलता हासिल की है। शागंवी के कुल 202 अंक है। मालूम हो कि अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों का कट ऑफ 108 से 137 के बीच में है ऐसे में शागंवी को अच्छे सरकारी कॉलेज में दाखिला मिलेगी। शागंवी को उस दौर से भी गुजारना पड़ा है जब सामुदायिक प्रमाण पत्र बनाने के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी थी। बाद में डीएम के हस्तक्षेप के बाद उन्हें प्रमाण पत्र मिला था। शागंवी की यह कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो संसाधन के अभाव में अपने लक्ष्य से पीछे हट जाते हैं।