बिहार के गया जिला के बोधगया के रामपुर गांव से अगर आप गुजरेंगे, तो यहां ज्यादातर घरों में ठक-ठक की आवाज सुनने को मिलेगी। यह आवाज भारत के 10 चुनिंदा गांवों से आपको सुनाई देगी। इसमें गया का यह गांव शुमार है। दरअसल तीन साल पहले जिस गांव के लोग स्वनिर्मित कंबल बेचते थे, अब केंद्र सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल ने इसकी सूरत बदल कर रखी है। गया के बोधगया के रामपुर गांव को क्राफ्ट हैंडलूम विलेज के रूप में केंद्र सरकार के द्वारा चुना गया है जिसमें युवाओं की साझेदारी के साथ हथकरघा सेक्टर का विकास उद्देश्य था। भारत सरकार के द्वारा यहां के 20 बुनकरों को मुफ्त चरखा, हैंडलूम और उपकरण रखने के लिए पक्का मकान दिया गया है।
बता दें कि दो वर्ष पहले केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने देश के 10 गांव को क्राफ्ट हैंडलूम विलेज के रूप में चुना था, जिसमें गया का रामपुर गांव शुमार था। रामपुर गांव क्राफ्ट हैंडलूम गांव के रुप में चुने जाने के बाद यहां के बुनकरों को कई सुविधाएं मिल रही हैं। यहां कई हस्तकरघे और चरखे स्थापित किए गए हैं। गांव को आकर्षक अंदाज देने के लिए भारत और प्रदेश सरकार की कई परियोजनाओं को मूर्त रूप मिल रहा है।
वैसे रामपुर गांव भेड़ पालन के लिए जाना जाता था। भेड़ पालक हाथों से कंबल निर्मित और बिक्री करते थे। यहां बड़ी तादाद में भेड़ों की बाल से कंबल बनाया जाता था, मगर केन्द्र सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल ने इस गांव की सूलत बदल दी है और अब यहां हैंडलूम से वस्त्र बनाए जा रहे हैं। 20 बुनकरों को हस्तकरघा देते हुए वस्त्र निर्माण का ट्रेनिंग भागलपुर के हस्तकरघा बुनकर सेंटर के ट्रेंड द्वारा दिया गया है। बुनकर वस्त्र निर्माण हेतु धागा भेड़ के ऊन से बना रहे हैं। 20 बुनकरों को सूत कातने हेतु चरखा मुहैया कराया गया है। ट्रेंड महिलाएं सूत कातने का कार्य करती हैं।
स्थानीय ग्रामीण राजेश पाल, उदय कुमार और रामेश्वर प्रसाद ने मीडिया को बताया कि भारत सरकार की योजना आने के पश्चात लोगों के दिन बदल गए हैं। पूर्व में लोग हाथ से भेड़ के ऊन की कंबल तैयार क थे, मगर अब हैंडलूम के जरिए स्थानीय बाजार बोधगया में बेचकर मोटी कमाई कर रहे हैं। सरकार का इस में काफी योगदान रहा है। लगभग 20 परिवार को हैंडलूम मिला।