सफलता किसी परिचय की मोहताज नहीं होती। एक ऐसे ही संघर्षों और तमाम प्रयासों से बने आईएस रुक्मिणी रायर की कहानी है, जो कभी 6वीं क्लास में फेल हो गई जिसके चलते उन्हें डिप्रेशन का सामना करना पड़ा था। उनकी यह सफलता इसलिए भी खास है कि उन्होंने बिना किसी कोचिंग क्लासेज के सेल्फ स्टडी कर आईएएस अधिकारी बनी।
मूल रुप से चंडीगढ़ से आने वाली रुक्मिणी रायर के पिता बलजिंदर सिंह रायर होशियारपुर के डिप्टी डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी रह चुके हैं। कम उम्र में ही बोर्डिंग स्कूल में जाने से रुकमणी काफी परेशान थी, जिसके वजह से कक्षा छठी में फेल हो गई थी। और उस समय वह डिप्रेशन में चली गई थी, लेकिन उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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रुक्मणी ने शुरुआती पढ़ाई करने के बाद अमृतसर के गुरु नानक देव विश्वविद्यालय से सोशल साइंस में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस से सोशल एंटरप्रेन्योरशिप में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। पोस्ट ग्रेजुएशन में उन्हें गोल्ड मेडल भी मिल चुका है। मैसूर और मुंबई के एनजीओ में काम करने के साथ ही प्लैनिंग कमिशन ऑफ इंडिया में भी रुक्मिणी को काम करने का अनुभव प्राप्त है।
साल 2018 में पहली बार रुकमणी ने सिविल सर्विसेज की परीक्षा दी। पहले ही प्रयास में रुक्मणी ने दूसरी रैंक हासिल की। उनकी प्रतिभा को इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने इसके लिए कोई कोचिंग क्लासेस नहीं किया, सेल्फ स्टडी का बोला था तो उन्होंने यूपीएससी का एग्जाम क्लियर किया। महज 23 साल के उम्र में ही बन गई आईएएस अफसर।
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रुकमणी बताती है कि छठी क्लास में पढ़ती थी तब फेल हो गई थी। बोर्डिंग स्कूल का दिन उनके लिए काफी मुश्किल भरा वक्त था। पढ़ाई में रुचि कम होने लगी थी लेकिन उन्होंने इसी असफलता को अपना हथियार बना लिया।