बिहार ख़बर डेस्क : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की एक बेहद खूबसूरत कविता है, वह तोड़ती पत्थर, देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर, वह तोड़ती पत्थर। जी हां, यह सारे जतन इंसान अपना पेट भरने के लिए ही करता है। लगभग ऐसी ही एक तस्वीर छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर की सड़कों में रोजाना देखने को मिलती है।
बात यह है कि अगर इस शहर में किसी से भी तारा प्रजापति के बारे में पूछा जाए तो वह एक ही जवाब देगा कि वह बहुत ही जज्बे वाली महिला हैं। वह अपने बच्चे को गोद में लेकर पूरे शहर में ऑटो रिक्शा चलाने का काम करती है।
यह काम बिल्कुल भी आसान नहीं है लेकिन बावजूद इसके उसे यह काम करना पड़ता है। ऐसे में वह अपने काम के दौरान अपने बच्चे का भी पूरा ध्यान रखती है। इसके लिए वह पानी की बोतल के साथ खाने का भी सामान साथ रखती है। कहते हैं कि जहां चाह है, वहां राह है और इंसान यदि चाह ले तो हर काम को किया जा सकता है।
अभावग्रस्त जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए तारा ऑटोरिक्शा चालक बन गई है. तारा 12वीं (कॉमर्स) तक पढ़ी हैं, 10 साल पहले जब उनकी शादी हुई तो परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी। किसी तरह से पति ने ऑटो चलाने का काम किया। परिवार की स्थिति सुधर सके इसके लिए तारा ने अपने पति का साथ दिया और खुद भी ऑटो चालक बन गईं।
तारा प्रजापति का कहना है कि वो बेहद ही गरीब परिवार से आती हैं और उनकी बच्चे की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। पेट पालने के लिए ऑटो चलाना भी जरूरी है। परिवार की स्थिति ठीक नहीं है बच्चों की पढ़ाई और घर ठीक से चल सके इसलिए मैं ऑटो चलाती हूं। मैंने अपने पति के साथ खुद परिवार की जिम्मेदारी उठानी शुरू कर दी है। छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए मैं आज भी संघर्ष करने से पीछे नहीं हटती हूं।