पंजाब के बटाला में रहने वाले 63 वर्षीय जगमोहन सिंह नागी, इंग्लैंड से पढ़कर भारत लौटे और अपना एग्री बिजनेस शुरू किया। आज वह करोड़ों की कमाई कर रहे हैं, तथा उसका लाभ सैकड़ों किसानों को भी मिल रहा है। जगमोहन करीब 300 एकड़ जमीन पर कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग कर रहे हैं। इससे हर साल 7 करोड़ से अधिक टर्नओवर होता है। मक्का, गेहूं ,सरसों के अलावा टमाटर ,गोभी, गाजर, आदि कई मौसमी सब्जिया उगाते हैं।
जगमोहन अपनी खेती ऑर्गेनिक तरीके से करते हैं और उनके उत्पादों की आपूर्ति केलॉग्स, पेप्सी फूड जैसी कंपनियों के साथ दुबई ,न्यूजीलैंड इंग्लैंड, हांगकांग जैसे कई देशों में होती है। जगमोहन से पंजाब और हिमाचल प्रदेश के 300 से अधिक किसान जुड़े हैं।उन्होंने अपने बिजनेस को संभालने के लिए 70 से अधिक लोगों को रोजगार भी दिया।
मेरे पिताजी चाहते थे कि मैं फूड बिजनेस का काम करूं, पढ़ाई करने के बाद। इसलिए मैं इंग्लैंड चला गया और वहां के बर्मिंघम यूनिवर्सिटी से Food Cereal Milling & Engineering में 3 साल का डिप्लोमा किया। और वापस आने के बाद, मैंने एग्री-बिजनेस शुरू किया।
जगमोहन ने 1989 में, कुलवंत न्यूट्रीशन शुरू की। उन्होंने शुरुआत कॉर्न मिलिंग (Corn Milling) से की। वह बताते हैं, उस समय पंजाब में मक्के की खेती ज्यादा नहीं होती थी। इस वजह से हमें कच्चा माल पूरा नहीं मिल पाता था।फिर मैं हिमाचल प्रदेश से मक्का मंगाना शुरू किया। फिर, 1991 में मैंने कांट्रेक्ट फार्मिंग शुरू किया और धीरे-धीरे सारे मक्के खुद से ही उगाने लगे।साल 1992 में जगमोहन पेप्सी फूड के साथ जुड़े। उनके पास हर महीने करीब 1000 टन मक्के की मांग थी।
वह किसानों को बाय बैक फैसिलिटी देते थे इसके लिए उन्हें 2006 में प्रोगेसिव फार्मर का अवॉर्ड भी दिया गया। इसी के बाद, 2013 में कैनिंग और सब्जियों के बिजनेस भी शुरू किए आज वह करीब 300 एकड़ कांट्रेक्ट फार्मिंग करते हैं।वह आगे बताते हैं, हमने अपने उत्पादों को स्थानीय मार्केट में बेचना शुरू कर दिया। इसके बाद, मैं दुबई, कनाडा, अमेरिका, हांगकांग जैसे देशों में अपने उत्पाद बेचने लगा।
कोरोना महामारी के दौरान फोकस शिफ्ट
जगमोहन बताते हैं, कोरोना महामारी के दौरान कई फैक्ट्रियां और बिजनेस बंद हो गए, लेकिन ग्रॉसरी स्टोर बंद नहीं हुए। इसी को देखते हुए, मैंने ऑर्गेनिक गेहूं का आटा और मक्के का आटा पर फोकस कर रहा हूं।
किसानों के साथ-साथ सरकार से भी अपील
जगमोहन कहते हैं, आज किसान दिशा-निर्देशों को बिना पढ़े ही अपने खेतों में बीज लगा देते हैं। जिससे उनकी उपज अच्छी नहीं हो पाती इसलिए खेती में जरूरी मानकों का पालन करना जरूरी है। यदि किसान पुराने बीज का इस्तेमाल करते हैं, तो इससे फसल की मैच्युरिटी लेवल कम हो जाती है। वे कहते हैं नई पीढ़ी के लोग खेती करना नहीं चाहते हैं। उन्हें नौकरी की तलाश होती है। ऐसे युवाओं को प्रेरित करने के लिए सरकार को खेती आधारित व्यवसायों को बढ़ावा देना होगा।
जगमोहन कृषि छात्रों की मदद के लिए उन्हें फ्री ट्रेनिंग भी देते हैं। साथ ही, यदि कोई किसान खेती की तरीकों को सीखना चाहते हैं, तो उनकी भी मदद करते हैं। और कृषि विज्ञान केन्द्र, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से संस्थानों में रिकमेंड करते हैं। उनका कहना है कि कोरोना महामारी के बाद लोगों का नजरिया बदला है। आने वाले 5-10 वर्षों में किसानों में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं। उनका कहना है कि किसानों को मौसम के हिसाब से फसलों को चुनाव करना होगा, जिससे उन्हें ज्यादा फायदा हो।