1 लाख से शुरू शुद्ध दूध डिलीवरी के बिजनेस से 27 वर्षीय महिला ने किया 2 साल में 2 करोड़ का टर्नओवर

यदि हम बात बड़े शहरों की करे तो यदि वहाँ हमे शुद्ध गाय के दूध की जरूरत हो तो शुद्ध गाय का दूध ढूंढने में हमें काफी मुश्किल होती है। दरसल प्रति 3 में से 2 भारतीय जो दूध को पीते हैं, उसमें पेंट और डिटर्जेंट अथवा किसी न किसी तरह की मिलावट होती है। इस बात की पुष्टि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) के एक सर्वे के द्वारा किया गया है। शिल्पी सिन्हा वर्ष 2012 में जब उच्च शिक्षा लेने हेतु प्रथम बार अपने घर से बेंगलुरु आईं, तो उन्हें भी इसी समस्या को झेलना पड़ा था।

आपको बता दें कि शिल्पी झारखंड राज्य के डाल्टनगंज की की मूल निवासी हैं। आपको पता हो कि यह एक ऐसा जगह है जिसकी जनसंख्या बेंगलुरु से 20 गुना कम है। वहाँ शिल्पी हमेशा अपने दिन का आरंभ सुबह एक कप दूध से करती थी। शिल्पी ने बताया कि महानगर में जाने के पश्चात शिल्पी को शुद्ध और बिना मिलावटी गाय का दूध पीने के महत्व की समझ हुई।  

शिल्पी ने बताया कि,

“मैं बिना शुद्ध और शुद्ध दूध पीये हुए बड़े हो रहे बच्चों की कल्पना भी नहीं कर सकती।”

छह वर्ष बाद जनवरी 2018 में, शिल्पी ने द मिल्क इंडिया कंपनी की स्थापना की। 

शुद्ध दूध क्यों?

डेयरी की द मिल्क इंडिया कंपनी एक ऐसी कंपनी है जो गाय का शुद्ध दूध ग्राहकों को ऑफर करती है। यह दूध पूरी तरह कच्चा दूध होता है, जिसे न ही पाश्चरीकृत किया गया होता है और न ही किसी प्रोसेस से गुजारा गया होता है। अभी यह स्टार्टअप बेंगलुरु में स्थित सरजापुर के 10 Km के क्षेत्र में 62 रुपये प्रति लीटर की मूल्य पर दूध बेचती है। 

दरसल गाय के दूध पीने से बच्चों की हड्डियां काफी मजबूत होती हैं और यह दूध कैल्शियम बढ़ाने में भी काफी मददगार होता है।

इधर 27 वर्षीय शिल्पी का कहना है उनकी स्टार्टअप का लक्ष्य अभी 1 से 8 वर्ष तक के बच्चों के माता-पिता को सर्विस अवलेबल कराने पर केंद्रित है क्योंकि अधिकांश बच्चों का शारीरिक विकास इन्हीं प्रारंभिक सालों के क्रम में होता है। वह सदैव ही माताओं से उनके बच्चे की आयु के बारे में पूछती है और उन्हें 9 या 10 माह के बच्चों की माताओं से कई ऑर्डर निरंतर मिलते ही रहते हैं।

शिल्पी ने बताया की,

“मैं किसी भी ऑर्डर को लेने से पूर्व माताओं से उनके बच्चे की आयु के बारे में पूछती हूँ। अगर वह कहती है कि बच्चा एक वर्ष का भी नहीं है, तो हम उन्हें इंतजार करने को कहते हैं और उन्हें डिलीवरी नहीं देते हैं।”

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